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टुसू परब आज से

 आज से खेत में सूर्य की पहली किरण के साथ किसान – खेत में हल – बैल जोत कर खेती की शुरुआत …..

 

(14 जनवरी कुरमाली नववर्ष मनाया और शुभ कार्य प्रारंभ)

मुरी ( संदीप पाठक ) :- यह दिन टुसु की बलिदान दिवस है इस दिन कुंवारी युवतियाॅ टुसु पकड कर आगे उसके पीछे महिलायें और सबसे पीछे पुरुष गाजे गाजे के साथ पहले गाॅव में टुसु भ्रमण करते है। उसके बाद टुसु जुलुस फिर टुसु विसर्जन, स्नान, दान पूण्य और परिवार की मंगल कामना करते है।

 

इस वर्ष यह परब 14 जनवरी को हैं । कुरमाली नववर्ष है इस दिन के प्रत्येक कार्य को शुभ माना गया है लोग अपने खेत में सूर्य की पहली किरण के साथ तीन, पाॅच या सात पाक खेत जोतते है। घर आने पर बैल का पैर गृहणी द्वारा धोया जाता है। फिर उसके पैर और सिंग में तेल दिया जाता है तत्तपष्चात उसे धान एवं पीठा खाने दिया जाता है। पुरुष गोबर काट कर खेती बारी का काम शुरु करता है उसके बाद घर की गृहणी द्वारा उसका पैर धोया जाता है तेल लगाया जाता है।

यह नेग 15 जनवरी को है इसके बाद दिन से पीठा लेकर गोतियारी जाने का नेग है। आखाइन जातरा के साथ शादी विवाह का नेगाचारी शुरु हो जाता है।

 

कई प्रमुख स्थानों में लगता है टुसु मेला :-

प्रमुख टुसु मेलाओं में तुलीन बांधाघाट मेला सुवर्णरेखा नदी, सतीघाट मेला राढ़ु कांची और सुवर्ण रेखा संगम स्थल बरेन्दा, हुडरु टुसु मेला, मुरी टुंगरी टुसु मेला, सत्य मेला झालदा, राजरप्पा टुसु मेला, गौतमधारा टुसु मेला, माठा टुसु मेला, जयदा टुसु मेला, हिड़िक टुसु मेला, राममेला तिरुलडीह, हरिहर मेला, चोपद टुसु मेला, सुईसा नेताजी टुसु मेला, देवड़ी टुसु मेला, सूर्य मंदिर टुसु मेला बुन्डु, पतराहातु टुसु मेला, नीलगिरी टुसु मेला, मुनगा बुरु टुसु मेला, भेलवा टुंगरी टुसु मेला, नामकोम टुसु मेला रांची, जमशेदपुर टुसु मेला आदि सैकड़ो मेला लगते है। सुवर्णरेखा, दामोदर, कंसावती और इनकी सहायक नदियों के किनारे अनेक मेला लगते है।

टुसु परब में गाॅव पर निवास करने वाले अधिकांश लोग नये कपड़े एवं जुता चप्पल खरीदते है। तरह तरह के खिलौने बिकते है। ढोल नगाड़ा और बाद्यय यंत्र की भी खुब बिक्री होती है इसके अतिरिक्त लकड़ी और लोहे की बनी घरेलू सामान की भी खुब बिक्री होती है खिलौने भी बिकते है। गाजर, मटर और सांक आलु तथा कतारी की भी खुब बिक्री होती है। बादाम बेचने वालों से हलवाई तक को रोजगार प्राप्त होता है। इसीलिए टुसु परब का महत्व बढ़ा हुआ है। ढोल नागाड़ा बजाने वाले, साउण्ड बाले और गाड़ी वाले को भी रोजगार प्राप्त होता है। इस परब में अधिकांष नये चीजों का प्रयोग होता है।

टुसु परब प्रकृतिक धरम पर आधारित है प्रकृति पुजक लोगों का कोई लिखित ग्रन्थ नहीं है। पुजा करने की भी कोई लिखित भाषागत मंत्र नहीं है। इसीलिए प्रकृति पुजक लोगों को वेद विधी छाड़ा जाति बोला जाता है। परब का नाम अपनी भाषा के अनुसार है। देवा भुता भी उसी तरह है। उन्हे स्मरण करने मात्र से ही संतुष्ट हो जाते है।

कुरमाली संस्कृति में पुजा का तात्पर्य बलि है जबकि परब का तात्पर्य पीठा है। इस संस्कृति में बारह मासे तेरह परब है। प्रत्येक परब का अलग अलग गीत और रंग है।
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