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खरसावां शहीद दिवस पर विशेष: शहीदों को जाता है “जय झारखंड” उद्घोष का श्रेय; खरसावां गोलीकांड को याद कर सिहर उठता है जनमानस का मन मस्तिक; जिसकी तुलना सरदार पटेल ने भी जालियांवाला बाग हत्याकांड से की थी…..

पहली जनवरी जब पूरा विश्व नव वर्ष के स्वागत में खुशियां मना रहा होता है तब खरसावां खून के आंसू रोता नजर आता है…

सरायकेला संजय मिश्रा

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 “शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले; वतन पर मिटने वालों का यही आखरी निशां होगा…..”

परंतु हर बरस के मेले यदि साल की पहली तारीख को लगे तो इसके दर्द का एहसास दिल की गहराइयों से की जा सकती है। जी हां, नव वर्ष की पहली तारीख को जब समूचा संसार खुशी और नई उमंगों में सराबोर होता है, उसी दिन खरसावां अपने भूमि पुत्रों की कुर्बानी के कारण खून के आंसू रोता हुआ नजर आता है। और चीत्कार कर ये आवाज सामने आती है कि आज अगर कहीं भी “जय झारखंड” का उद्घोष होता है तो इसका पूरा श्रेय इन झारखंडी शहीदों को ही जाता है। और साल की पहली तारीख पर शहीद समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने वाले हर व्यक्ति के समक्ष झारखंड के नव निर्माण की चुनौती होती है।

क्योंकि शहीद आत्माएं इस राज्य के सिर्फ तस्वीर ही नहीं तकदीर भी बदलती देखना चाहती है। बहरहाल नए साल के स्वागत के बदले लोग यहां शहीद समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचते हैं। और शहीदों के मान सम्मान के साथ शहीदों के सपनों का झारखंड निर्माण की कसमें भी शहीद वेदी पर खाई जाती है। बावजूद इसके काली स्याह खरसावां गोलीकांड के 72 वर्ष बीत जाने के बाद भी झारखंड की तस्वीर तो बदली लेकिन शहीदों के सपनों के आधार की तकदीर नहीं।

देश की आजादी के मात्र साढ़े 4 महीने के भीतर घटी थी खरसावां गोलीकांड की घटना:

1 जनवरी 1948 के खरसावां गोलीकांड की घटना को याद कर आज भी क्षेत्र के पुराने लोगों के मन मस्तिष्क सिहर उठते हैं। देश की आजादी के मात्र साढ़े 4 महीने के भीतर घटी इस घटना ने खरसावां वासियों के समक्ष आजादी के मायने पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया था।

बताया जाता है कि बिहार और उड़ीसा से अलग रहने की मांग करते हुए क्षेत्र के सैकड़ों आदिवासी खरसावां हाट मैदान में अपने नेता मारांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के इंतजार में उनको सुनने के लिए इकट्ठा हुए थे। किसी कारणवश जयपाल सिंह मुंडा के नहीं पहुंच पाने से परंपरागत हथियारों से लैस भीड़ राजमहल की ओर बढ़ने लगी। तभी सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों ने मशीनगनों से अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू कर दी। सरकारी आंकड़े घटना में 17 झारखंडियों की मौत की गवाही देते हैं। जबकि स्थानीय लोगों के अनुसार वीभत्स गोलीकांड में सैकड़ों लोगों की जाने गई थी। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी इस गोलीकांड की तुलना आजादी के बाद के जालियांवाला बाग हत्याकांड की घटना से की थी।

शहीदों के सम्मान में बना शहीद पार्क:-
खरसावां गोलीकांड में शहीद हुए लोगों की समाधि की पवित्रता बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा शहीद स्थल सौंदर्यीकरण योजना 2011-12 के तहत 1.72 करोड़ रुपए की लागत से शहीद पार्क का निर्माण किया गया है। जिसके और संवारने की कवायद की जा रही है।

शहीदों का सम्मान:-
शहीदों का सम्मान के तौर पर शहीद पार्क समाधि स्थल के साथ-साथ चांदनी चौक को वीर शहीद केरसे मुंडा चौक के रूप में परिवर्तित कर सौंदर्यीकरण किया गया है। इसके अलावा खरसावां गोलीकांड में शहीद हुए दो शहीदों के आश्रित परिवारों को 1-1 लाख रुपया का चेक प्रदान कर सम्मानित किया गया है।

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