रांची :पूर्व सीएम चंपाई ने धर्मांतरण एवं घुसपैठियों के खिलाफ बिगुल फूंका…
दीपक नाग… ✍️
झारखंड राज्य के अनेक सीमांचल जिलाएं पिछले कुछ वर्षों से बंगलादेश और रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए सबसे अधिक सुरक्षित जगह बनते जा रहा है । जिस कारण आदिवासी संस्कृति और सरना धर्म में ग्रहण लगना आरंभ हो चुका है । झारखंड के कला, संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए सरायकेला के भाजपा विधायक सह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने अपने चुनावी एजेंडा में घुसपैठियों पर अंकुश लगाने का नारा लगाकर चुनाव में जीत हासिल की थी ।
राजनगर में आज पूर्व सीएम चंपाई सोरेन ने धर्मांतरण एवं बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ जोर बिगुल फूंका फुंका । इस आन्दोलन में पूर्व सीएम चंपाई सोरेन को आदिवासी समाज के पारंपरिक धर्मगुरुओं का साथ मिला ।
धर्मांतरण एवं बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ संघर्ष में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को आदिवासी समाज के पारंपरिक ग्राम प्रधानों, धर्मगुरुओं एवं आम लोगों का पुरजोर समर्थन मिल रहा है। आज राजनगर के अमर शहीद सिदो-कान्हू की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने उपस्थित हजारों लोगों से सहयोग मांगा तो भीड़ ने दोनों हाथ उठा कर, उनका समर्थन किया।
कार्यक्रम की शुरुआत देश परगना एवं विभिन्न मांझी परगना के द्वारा दीप प्रज्ज्वलित हुई । मांझी परगना ने धर्मांतरण का मुद्दा उठाते हुए कहा यह आदीवासी संथाली समाज के लिए घातक हो गया है। मंच पर मौजूद हर वक्ता आदिवासी समाज पर आए संकट के मुद्दे पर एकजुट दिखा।
चौपाई सोरेन : झारखंड सरकार धृतराष्ट्र बने हुए हैं, आदीवासी -संथाली समाज को खुद आगे आना होगा –
पूर्व सीएम चंपाई सोरेन ने जन शैलाब को संबोधन में कहा, आदिवासियों के अस्तित्व एवं अस्मिता की रक्षा के लिए बाबा तिलका मांझी, वीर सिदो-कान्हू, भगवान बिरसा मुंडा, पोटो हो, टाना भगत समेत कई क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था। जब हमारे पूर्वजों ने अस्तित्व की लड़ाई में कभी भी आत्म-सम्मान से समझौता नहीं किया, तो फिर हम कैसे समझौता कर सकते हैं । हमारी संस्कृति और संस्कार गया तो हमारा समाज ही समाप्त हो जाएगी।
उन्होंने याद दिलाया कि 1967 में तत्कालीन सांसद कार्तिक उरांव ने संसद में डीलिस्टिंग बिल पेश किया था । जिसमें आदिवासियों की संस्कृति एवं अस्तित्व की रक्षा के लिए धर्मांतरण कर रहे लोगों को आरक्षण से बाहर रखने की बात कही थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा इसे संसदीय समिति को भेजा गया था । जिसने डीलिस्टिंग की अनुसंशा की थी। पर समय के अंतराल में मामला दब गया । उन्होंने कहा कार्तिक उरांव ने 322 सांसदों एवं 26 राज्यसभा सांसदों का हस्ताक्षर करवा कर इस बिल को लागू करने की अपील की। लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
कांग्रेस पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा, देश की आजादी के बाद भी 1951 की जनगणना तक आदिवासी धर्म कोड का प्रावधान मौजूद था, लेकिन 1961 में कांग्रेस की सरकार ने उसे खत्म कर दिया।
अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित कई लोकसभा एवं विधानसभा सीटों पर जीते ईसाई जन-प्रतिनिधियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, जिस किसी भी व्यक्ति ने रूढ़िवादी परंपरा को छोड़ दिया वह आदिवासी जीवन शैली को त्याग दिया । उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
उन्होंने कहा, आदिवासी समाज के अस्तित्व की रक्षा के लिए चल रहे आंदोलन का जिक्र करते हुए उन्होंने दावा किया कि बोकारो, हजारीबाग, चाकुलिया एवं ओडिशा में भी उनके कार्यक्रम होने जा रहे हैं। कुछ महीनों बाद, वे 10 लाख आदिवासियों के साथ, संथाल परगना की माटी से इस मुद्दे को उठायेंगे, जिसकी गूंज झारखंड के विधानसभा और दिल्ली तक सुनाई देगी।
उन्होंने संथाल परगना के साहिबगंज जिले का उदाहरण देते हुए क आ वहां आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर जीती कई जिला पार्षद एवं मुखिया तो आदिवासी समाज से हैं । लेकिन उनके पति मुस्लिम हैं। जब आप दूसरे समाज में शादी कर रहे हैं तो वहीं खुश रहे । हमारे समाज के अधिकारों में अतिक्रमण करने का प्रयास न करे तो अच्छा होगा ।
उन्होंने वीर भूमि भोगनाडीह का उदाहरण देते हुए कहा कि, आज वहां भी बांग्लादेशी घुसपैठियों का बोलबाला है और आदिवासियों से कई गुना ज़्यादा संख्या में वे लोग मौजूद हैं। पाकुड़ एवं साहेबगंज में ये घुसपैठियां ना सिर्फ आदिवासी समाज की जमीनें लूट रहे हैं बल्कि ये लोग हमारी बेटियों की अस्मत से भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
उन्होंने सरायकेला-खरसावां जिले के कपाली अंतर्गत बांधगोड़ा गांव का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां भी आदिवासियों की डेढ़ सौ एकड़ से अधिक जमीन छीन लिया गया है। आदिवासी समाज उठो और इसे रोकने के लिए आगे बड़ो।
उन्होंने जन सभा को संबोधित करते हुए कहा कि, झारखंड सरकार सब कुछ जानते हुए भी धृतराष्ट्र बने हुए हैं । वोट बैंक की वजह से इन लोगों को ना आदिवासियों पर हो रहा अत्याचार न तो तो दिखाई दे रही है और ना ही समझने की कोशिश कर रहे हैं।
बता दें कि आज का यह कार्यक्रम सरायकेला – खरसावां के आदिवासी सांवता सुशार अखाड़ा द्वारा आयोजित किया गया है । कार्यक्रम में हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग एक जुटे थें ।