रांची : केन्द्रीय राजनीतिक दल बनने की तैयारी करना झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए उचित होगा ?
✍️ : दीपक नाग
रांची : छोटा से बड़ा बनने की चाहत किसके दिल में नहीं होती है । यही सोच आगे का भविष्य तय करता है ।पिछले विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिली जोरदार जीत के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के केन्द्रीय संगठन कुछ सोच नहीं रहें होंगे ऐसा लगता नहीं है। एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल से केन्द्रीय राजनीतिक दलों के खेमे में शामिल होने की तैयारी और विचार करना आरंभ कर दिये हैं। क्यों कि, देश में अनेक राजनीतिक दल हैं जो क्षेत्रीय राजनीतिक दल से अपनी राजनीति आरंभ किये और कामयाबी हासिल कर केंद्रीय राजनीति दलों के श्रेणी में खड़े है ।
अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा भी ऐसा ही मन बना रहे हैं तो, आगामी लोकसभा चुनाव में झारखंड के सीमांचल से सटे हुए कुछ राज्यों में अपना भाग्य आजमा सकते हैं । झारखंड के भौगोलिक संरचना पर अगर विचार किया जाए तो यह समझना मुश्किल नहीं होगा कि, झारखंड मुक्ति मोर्चा कहां से अपना नया दौड़ आरंभ करने का सोच सकते है ! झारखंड का सीमांचल कुछ राज्य जैसे पश्चिम बंगाल, उड़िसा, छत्तीसगढ़ और बिहार से मुख्य रूप से जुड़े हुए है। इनमें से कुछ राज्यों के सीमांचल जिलों से झामुमो आगामी लोकसभा चुनाव में दस्तक दे सकते है । विषेश कर पश्चिम बंगाल, उड़िसा और बिहार में यह संभावनाएं व्यक्त किया जा सकता है । ऐसे मे, इन राज्यों में अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा को शिकस्त भी मिलती है तो भी अपने सहयोगी “इंडिया गठबंधन” में राजनीतिक वजन बनने का मार्ग प्रशस्त हो सकती है ।
देश में जात-पात, वर्ण – भेद, भाषा – संस्कृति – सभ्यता वगैरह-वगैरह मुद्दों को लेकर राजनीति और चुनाव लड़ने का ट्रेंड बन चुका है । ऐसे में झारखंड से सटे अन्य कुछ राज्यों के अनेक जिलों में संथाली और महातो समाज के लोगों का एक बड़ी संख्या मौजूद हैं । वैसे भी पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में झारखंड पार्टी अपनी मौजूदगी को वर्षा से अहसास कराते आ रहें हैं । ऐसे में पश्चिम बंगाल को अपना पहला पड़ाव बनाने का पहल करना झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए लाजिमी है।
राजनीति एक ऐसा ऊंट है कब कहां और कैसे करवटें लेगा यह पूर्व अनुमान करना किसी के भी लिए कठिन है । क्यों कि, केन्द्रीय राजनीति के चक्कर में राज्य के सरकार के सत्ता से भी हाथ धोना पड़ सकता है । इसका जीता जागता उदाहरण बिहार की राजनीति को देख सकते हैं । राष्ट्रीय जनता दल के हाथों से एक बार जो सत्ता का नेतृत्व छुटा, वह प्रतिष्ठा अब तक नहीं पा सका राष्ट्रीय जनता दल।
पार्टी के लिए बड़ा कुछ सोचना अच्छी बात है, पर अपने राज्य के प्रति सतर्क रहना भी जरूरी है। दस साल पहले जिन राजनीतिक दलों ने क्षेत्रीय राजनीतिक दल से केन्द्रीय राजनीतिक दलों के खेमे में शामिल हुए हैं उस वक्त देश और राज्यों की तस्वीरें कुछ और था, अब कुछ और है । झारखंड में बेरोज़गारी और पिछड़ेपन की हालत इन चौबीस सालों में और गहराया है । नियमित रूप से वृद्धावस्था पेंशन, अपाहिज पेंशन देने में सरकार सामर्थ्य नजर नहीं आ रहें हैं । विधानसभा चुनाव से पहले सरकार का ‘मईया सम्मान योजना’ के तहत ढाई हजार रुपए प्रतिमाह देने की घोषणा का क्या स्थिति है ? जनवरी’ 2025 के बाद से शायद ही किसी ‘मईया’ को मिल पाया है यह लाभ ! ऐसे में दूर की लड़ाई की तैयारी करने से पहले अपने राज्य की लंबित जिम्मेदारी और समस्या को पहले दूर करने की ज्यादा जरूरत लगता है ।
बहरहाल, आने वाले समय ही वस्तु स्थिति को स्पष्ट कर सकता है ।