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साहिबगंज
रण बिजय गुप्ता(संथाल ब्यूरो)

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रांची में सोसाइटी ऑफ़ जियो साइंटिस्ट, झारखण्ड के तत्वाधान में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) भारत सरकार के अपर महानिदेशक डॉ. दीपायन गुहा के अध्यक्षता में एक भू वैज्ञानिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। जिसमे साहिबगंज कॉलेज के भू विज्ञान विभाग के डॉ रणजीत कुमार सिंह क़ो साहिबगंज में प्रस्तावित Fossil Park के निर्माण में उनके अनवरत और उत्कृष्ठ योगदान , पहाड़, पर्यावरण संरक्षण , गंगा, जल और समाजिक कार्य में उत्कृष्ठ योगदान के लिए प्रशश्ती पत्र , शाल ओढ़ा कर व पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सोसाइटी के महामंत्री डॉ. अनल सिन्हा ने डॉ सिंह, GSI और सोसाइटी के सहयोग की चर्चा की। राज्य के पूर्व भूविज्ञान निदेशक अंजली कुमारी ने राज्य सरकार क़ो धन्यवाद दिया। सोसाइटी के अध्यक्ष आनन्द सहाय ने सदस्यों के साथ इसी माह में साहिबगंज फॉसिल पार्क और पाकुड़ में मिलने वाले फॉसिल सर्वेक्षण हेतु तकनिकी भ्रमण का प्रस्ताव दिया। डॉ रणजीत सिंह ने जिला प्रशासन व वन पर्यावरण विभाग के तरफ से इस क्षेत्र में भूवैज्ञानिक विकास के प्रतिबद्धता का विस्तर से चर्चा किया। उन्हेंने 2013 से लगातर भू वैज्ञानिक दृष्टिकोण से राजमहल साहिबगंज जिले का विकास हो साथ ही सर्वेक्षण कार्य के क्रम में डॉ रणजीत कुमार सिंह के सहयोग और योगदान को बताया। कार्यक्रम में लगभग 50 से ज्यादा जीएसआई के भू वैज्ञानिकों ने चर्चा में भाग लिया व आपने -आपने विचार रखें।
झारखंड के भू वैज्ञानिकों के द्वारा परिचर्चा में विश्व धरोहर फॉसिल्स के विभिन्न पहलुओं को लेकर चर्चा किया गया।जिसमें मुख्य रुप से साहिबगंज जिला के मंडरो फॉसिल पार्क में बनेपार्क ,ऑडिटोरियमम्यूजियम एवं इंटरप्रिटेशन सेंटर के साथ-साथ राजमहल में पाए जाने वाले फॉसिल इसके संरक्षण सुरक्षा और उस पर शोध के लिए विशेष रूप से चर्चा की गई ।
1940 में बीरबल साहनी वनस्पति के महान वैज्ञानिक ने विश्व में राजमहल के पहाड़ में मिलने वाले दुर्लभ फॉसिल को लेकर पूरे दुनिया में ख्याति प्राप्त हुआ। प्रो बीरबल सहनी ने राजमहल पहाड़ी क्षेत्रों को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।
डाँ श्री सिंह ने कहा कि झारखण्ड के साहिबगंज में राजमहल पहाड़ी दुनिया के भू वैज्ञानिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ताओ के लिए एक प्राकृतिक प्रयोगशाला और तीर्थ स्थल से कम नहीं है। इतने दशक के बाद भी आज तक वैज्ञानिकों व शोधार्थियों के लिए विश्व स्तर का शोध का न कोई प्रयोगशाला न ही आधुनिक उपकरण ना ही कोई आधारभूत संरचना बन पाया । इसको लेकर सरकार और शासन को ध्यान में लाने की जरूरत है । मंडरो फॉसिल में केवल पेट्रीफाइड फॉसिल्स का दिखाया गया है ।जबकि यहां पर अन्य लगभग 15 से 21 प्रजाति के फॉसिल जीवाश्म पाए जाते हैं ।उनका सुरक्षा संरक्षण और शोध कार्य को लेकर एक बीएसआईप लखनऊ के तर्ज पर यहीं भी संस्थान बनना चाहिए।
अभी तक बहुत सारे फॉसिल का आइडेंटिफिकेशन नहीं किया जा सका है। अभी भी बहुत सारे फॉसिल्स शोध के लिए बाट जोह रहे हैं।
कहा जाता है कि यहां पर अगर शोध सच्चे और ईमानदारी पूर्वक किया जाए तो डायनासोर के अंडे भी मिल सकते हैं।
प्राचीनतम हमारा पहाड़ है। सबसे पहले इसे सुरक्षित किया जाए। इसको सेंसेटिव जोन घोषित किया जाए ।
जो जीएसआई भारत सरकार द्वारा जियो हेरिटेज के रूप में जो घोषित है । उसका लाभ मिले ।पहाड़ के साथ ही यहां पर एक सौ छात्राओं के लिए प्रयोगशाला, शोधार्थियों के लिए खुलना चाहिए। जो आवासीय हो इसके साथ यहां के छात्र- छात्राओं को झारखंड के छात्र -छात्राओं को आठवीं कक्षा में ही भू विज्ञान जियोलॉजी विषय की पढ़ाई प्रारम्भ किया जाए। पाठ्यक्रम में लागू होना चाहिए।ताकि बच्चे भी झारखंड के पहाड़, पर्यावरण प्रकृति के साथ फॉसिल की जानकारी प्राप्त कर सके।
छात्र छात्राएं झारखंड से भू विज्ञान विषय से स्नातक या स्नातकोत्तर करते हैं उसे शिक्षक बनने का अवसर मिल सके इसके लिए भूविज्ञान और भूगोल को एक साथ जोड़ कर शिक्षक परीक्षा में इसे सम्मिलित करने का भी सरकार को बी एड में नामांकन में पहल करनी चाहिए। भू विज्ञान विषय हम जानते हैं कि अप्लाइड साइंस में आता है।यह एक टेक्निकल कोर्स है ।उसका प्रमाण पत्र मिलता है। छात्रों को इसलिए भूगोल और भू विज्ञान को मर्ज कर शिक्षक भर्ती में सम्मिलित किया जाए। जैसा कि बिहार में बिहार सरकार ने पूर्व में ही कर चुका है ।
इसे लागू करने से हजारों आदिवासी पहाड़ियां गरीब छात्रों का भविष्य संवर जाएगी ।
डाँ रंजीत कुमार सिंह ने कहा कि सम्मान मेरे निष्ठा ईमानदारी पूर्वक किए गए कार्य व समाज में नई पहचान और ऊर्जा दिलाई ।

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