आदिवासी समाज के अस्तित्व पहचान की रक्षा को लेकर
आदिवासी सेंगेल अभियान ने जिला समाहरणालय के समक्ष
दिया धरना…
सरायकेला Sanjay : आदिवासी समाज के अस्तित्व पहचान हिस्सेदारी पर आज तक चौतरफ़ा हमला हुआ है, उसकी रक्षा के लिए बृहद आदिवासी एकता और जन आंदोलन की जरूरत है। परंतु इसके लिए सही नेता, नीति, रणनीति और एक्शन प्लान या कार्य योजना जरूरी है। आदिवासी सेंगेल अभियान ने इस कमियों को दूर करने के लिए पहली जनवरी 2023 को दुमका से राष्ट्रीय आदिवासी विद्रोह का बिगुल फूका है। सेंगेल का लक्ष्य है आदिवासी का भाषा जाति धर्म आदि बना उसको न्याय और अधिकार दिलाना। उक्त बातें पूर्व सांसद सह सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सलखान मुर्मू ने जिला समाहरणालय के बाहर धरना प्रदर्शन के दौरान कहा।
उन्होंने कहा कि भारत के संविधान अनुच्छेद 25 के तहत भारत के राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समझदारी और सहयोग से यह 2023 में प्राप्त हो सकता है। कुड़मी को एसटी बनाने से असली आदिवासी का नेस्तनाबूद हो जाने के खतरा का मामला मंडरा रहा है। इस मामले पर आदिवासी समाज में चिंता जायज है। किंतु जाति विशेष के खिलाफ संघर्ष करने की रणनीति गलत है। चूंकि आज कुड़मी जाति एसटी बनने की जिद कर रहा है तो कल बनिया, कुम्हार आदि भी कर सकते हैं तब आदिवासी किसके किसके खिलाफ लड़ेगा? विचारणीय विषय यह है कि यह वोट बैंक से जुड़ा राजनीतिक मामला है। इसके पीछे वोट बैंक की लोभ लालच की राजनीतिक स्वार्थ के लिए राजनीतिक दल दोषी है।
अभी कुड़मी को एसटी बनाने की अनुशंसा झारखंड की जेएमएम सरकार, उड़ीसा की बीजेडी सरकार और बंगाल की टीएमसी सरकार ने कर दिया है। कुड़मी के समर्थन में प्रमुख राजनीतिक दल और उसके प्रतिनिधि खुलकर समर्थन और हस्ताक्षर कर रहे हैं। जबकि आदिवासी जनप्रतिनिधि पार्लियामेंट विधानसभा और पंचायत तक में अधिकांश चुप है। आदिवासी समाज को पार्टियों और सरकारों के खिलाफ आवाज बुलंद करना चाहिए। जो कुड़मी को एसटी बनाने के मामले में दोषी है, न कि सीधे कुड़मी जाति समाज का विरोध करना या किसी और जाति समाज का विरोध करना। धरना प्रदर्शन के दौरान सेंगेल के जिला अध्यक्ष कालीपद टुडू, शंकु टूडू, देवनाथ हेंब्रम, श्रीमती हेंब्रम, दुर्गाचरण, यदूनाथ, बागुन एवं उमेश ने उपस्थित होकर अपना विचार रखा।