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चुआड़ विद्रोह के महानायक व स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम क्रांतिवीर वीर शहीद रघुनाथ महतो के 245वीं शहादत दिवस 5 अप्रैल पर विशेष . . .

अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष का परिणाम था चुआड़ विद्रोह।

सरायकेला। शहादत जीवन-मूल्य को सार्थक बना देता है। मानव समाज ऐसे लोगों को अपने जीवन का आदर्श मानकर उन्हें युग युग तक याद करते हैं। जब जब देश, प्रदेश, समाज आदि में किसी भी प्रकार के परिवर्तन की जरूरत पड़ती है, तो ऐसे ही महान व्यक्तित्वों के त्याग, बलिदान और कर्तव्य को पढ़ाया जाता है। सिखाया जाता है उनके विचारों को, गुलामी से मुक्ति पाने की राह को। आज युवा पीढ़ी उन्हें याद कर रहे हैं जो हमारी देश के लिए स्वतंत्रता की आवाज बुलंद कर मानव समाज को जगाने का सार्थक प्रयास किया। उल्लेख करते हैं- ऐसे ही वीरों एवं पराक्रमियों की धरती झाड़खंड में जन्मे असंख्य योद्धाओं में क्रांतिवीर वीर शहीद रघुनाथ महतो की वीरता एवं पराक्रमियों की गौरवपूर्ण शहादत का। तत्कालीन जंगलमहल क्षेत्र (झाड़खंड) में अंग्रेजों का सर्वप्रथम सशक्त विरोध क्रांतिवीर रघुनाथ महतो के नेतृत्व में सन् 1769 में हुआ। इतिहासकारों की माने तो यह प्रथम “चुआड़ विद्रोह” कहा गया। यह “चुआड़ विद्रोह” जमीन के मालिकों व स्वतंत्र स्वशासन में रहने वाले कोल, कुड़मी, भूमिज, सरदार, संथाल आदि आदिम निवासियों का समन्वित विद्रोह था। अब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इस भयंकर आग को विराट व्यापक सक्षम नेतृत्व की आवश्यकता थी। क्रांतिवीर रघुनाथ महतो इस आंदोलन को सशक्त व व्यापक नेतृत्व करने में सक्षम थे। क्रांतिवीर बलिष्ठ, लठैत व विशाल प्रतिभा के धनी होने के साथ-साथ दुश्मनों की कुटनीतिक चाल व षड़यंत्र को समझने परखने की क्षमता रखते थे। इनके यही प्रतिभा आज के पीढ़ियों के लिए एक आदर्श मार्गदर्शन बन गया।

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क्रांतिवीर रघुनाथ महतो का जन्म फाल्गुन पूर्णिमा 21 मार्च 1738 को सरायकेला-खरसावां जिला के नीमडीह थानांतर्गत घुंटियाडीह ग्राम, वर्तमान झाड़खण्ड प्रदेश में हुआ था। इनके पिताश्री स्व० काशीनाथ महतो (हिंदइआर), माताजी करमी महतो थे। बचपन से ही क्रांतिवीर अन्याय, शोषण, दमन आदि के सख्त खिलाफ थे। जब दिन पर दिन ब्रिटिश हुकूमतों के चकलादारों, तहसीलदारों का अत्याचार बढ़ने लगा तो 1968 को खेती पैदावार खेत से उठने के पश्चात क्रांतिवीर रघुनाथ महतो किसानों को संगठित करने लगे। वे चुपचाप रात में मीटिंग करते, नौजवानों को अंग्रेजी जुल्मों की जानकारी देते और जोर जुल्म के विरोध में संघर्ष करने की मानसिकता तैयार करते थे। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को चोट देने के निमित्त मालगुजारी नहीं देने की घोषणा करने लगे। विद्रोह का स्वर दिन-ब-दिन मजबूत होने लगा। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक नारा बुलंद किया…..
“आपन गांव आपन राइज
धुर खेदा ब्रिटिश राइज।”
अर्थात अपना गांव अपना राज दूर भगाओ ब्रिटिश राज की बुलंद आवाज से उस समय देखते ही देखते हजारों नौजवान विद्रोही जोश खरोश व उमंग के साथ इनके साथ खड़े हुए। आज भी मीटिंग स्थल के क्षेत्र को रघुनाथपुर के नाम से जानते है। इस अंचल में चुआड़ विद्रोह के शुरुआती दौर में लगभग तीन साल तक आदिवासी कुड़मि लोग ही मोर्चा संभाले हुए थे। फिर संथाल, भूमिज, कोल, मुंडा आदि धीरे-धीरे इस मुहिम में जुड़ने लगे। क्रांतिवीर रघुनाथ महतो की सेना में लगभग पांच हजार से अधिक लोग शामिल थे। यह सेना तीर-धनुष, टांगी, फरसा, तलवार, बल्लम्, घुंइचा आदि स्वनिर्मित हथियारों से सुसज्जित था। तत्कालीन भारत के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने विद्रोह थमता नहीं देख, छोटानागपुर खास, जंगल महल और रामगढ़ के कमिश्नरों से रघुनाथ महतो और विद्रोहीयों से बातचीत कर समस्या का समाधान करने का आदेश दिया कि उन पर किसी तरह का दमनात्मक कारवाई ना हो। लेकिन जमींदारों ने गवर्नर जनरल की नहीं मानने के लिए कमिश्नर पर दबाव बनाया। विद्रोह के बढ़ने के साथ ही कुछ जमींदार अपने स्वार्थ सिद्धि व शासनाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से अंग्रेजों के दलाल बन गए।

यही लोग विद्रोहियों के खिलाफ गुप्तचरी करने लगे और एक तंत्र स्थापित हुई जिसका मकसद क्रांतिकारियों के गतिविधियों पर नजर रखना। 5 अप्रैल 1778 चुआड़ विद्रोह के महानायक क्रांतिवीर रघुनाथ महतो और उनके सहयोगियों के लिए एक दुर्भाग्य का दिन साबित हुआ। इस तिथि को रघुनाथ महतो ने लोटा के “गड़तैतेइर” नामक गुप्त स्थल पर विद्रोहियों की एक गुप्त बैठक बुलाई। यहां चुनिंदे विद्रोहियों को साथ लेकर रामगढ़ पुलिस बैरक में हमला करने के लिए प्रस्थान करने वाले थे और वहां बंदूक लूटने की योजना थी। परंतु कुछ चाटुकारों के माध्यम से इस योजना का भनक अंग्रेजों को मिल गई। अंग्रेजों के सिपाही पूरी तैयारी के साथ घेर लिया और विद्रोहियों पर ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी। इसका मुकाबला बल्लम्, तलवार, तीर धनुष, फरसा आदि से किया जाने लगा। करीब एक दर्जन लोग शहीद हुए, सैकड़ों घायल हुए तथा कुछ लोगों को गिरफ्तार कर ले गए। उस दिन की घटना में क्रांतिवीर अपनी सहयोगियों के साथ शहीद हो गए। इस घटना ने लोटा-किता गांव को पावन तो किया ही बल्कि इतिहास में यह धरती स्वर्ण अक्षरों में आंकी गई। घमासान अब भी साक्षी है कि वर्तमान किता शिव मंदिर के करीब 15 मीटर दक्षिण-पश्चिम में दो पत्थर शहीदों की स्मृति में है और अन्य दो पत्थर किता जाहेरथान के पश्चिम में है। कुल चार शीलस्मृति शहीदों के नाम पर किता के सीमाना में हैं।

दो पत्थर जो शिव मंदिर के समीप अवस्थित हैं उनमें से एक ऊंचा तथा एक उससे छोटा है, उस गांव के वरिष्ठ लोगों का कहना है कि सबसे ऊंचा पत्थर स्मृति क्रांतिवीर रघुनाथ महतो एवं छोटा उनके सहयोगी बुली महतो का स्मृति चिन्ह है। यदि इतिहासकार को देखें तो चुआड़ विद्रोह भारतीय स्वतंत्र संग्राम का पहला संगठित विद्रोह कहा जा सकता है। आख़िरी पंक्ति यह कि हमारे क्रांतिवीरों को जायज लड़ाई के लिये व नीच दिखाने के लिए तथा अपमानित करने के लिए चुआड़ कहा गया था। परन्तु आज इन क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का सम्मान व श्रद्धा देखने को मिल रहा है। इन दिनों सुबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, भारत सरकार के जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा, झारखंड सरकार के मंत्री चंपाई सोरेन व सुबे के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास आदि प्रमुख जनों ने जयंती एवं शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि देकर आने वाले भावी पीढ़ियों को प्रेरणा जगाने का काम कर रहे हैं।

रांची लोकसभा सांसद संजय सेठ ने केंद्रीय रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखकर मुरी जंक्शन रेलवे स्टेशन का नामकरण वीर शहीद रघुनाथ महतो के नाम पर करने की मांग की है। देखते हुए महसूस हो रहा है कि इनके प्रति जनप्रतिनिधियों एवं जनताओं की कितनी अधिक श्रद्धा एवं भावनाएं जुड़ी हुई है। क्रांतिवीर सभी मजहबों, जातियों व वर्णों के आदर्श व श्रद्धा के पात्र हैं। तभी तो आज के युवाओं ने इनके जन्मस्थली से शहीद मृत्तिका कलश लेकर श्रद्धापूर्वक सैकड़ों किलोमीटर दिन-रात की पदयात्रा प्रारंभ किए है। लग रहा है असली श्रद्धांजलि का मर्म जनमानस को समझ में आ गया है। ऐसे वीर शहीदों के बारे में हमें जैसे जैसे जानकारियां बढ़ती जा रही है, वैसे वैसे लिखने व वर्णन करने में अक्षरों की कमी पड़ रही है।


गुणधाम मुतरुआर

(भूगोल शिक्षक)

अनुग्रह नारायण +2 उच्च विद्यालय,पिलीद, सरायकेला खरसावां, झाड़खण्ड।

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