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नपं उपाध्यक्ष ने कला एवं संस्कृति विभाग के सचिव को पत्र लिखकर सरायकेला छऊ नृत्य से संबंधित पुस्तक उपलब्ध कराने की मांग की…..

सरायकेला (संजय मिश्र) सरायकेला नगर पंचायत के उपाध्यक्ष सह राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र सरायकेला के सलाहकार सदस्य मनोज कुमार चौधरी ने कला एवं संस्कृति विभाग झारखंड सरकार को पत्र लिखकर सरायकेला छऊ नृत्य से संबंधित पुस्तक सह साहित्य का सृजन करने के संबंध में मांग की है। अपने लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि सरायकेला छऊ नृत्य आज वैश्विक पटल पर अपना पहचान बना चुकी है। यूनेस्को ने वर्ष 2013 में इसे विश्व का अमूर्त धरोहर की सूची में शामिल कर लिया है।

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लेकिन दुर्भाग्यवश छऊ से संबंधित साहित्य का सर्वथा अभाव है। पुस्तक की उपलब्धता के मामले में छऊ की स्थिति काफी दुर्बल है। राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र नाम से एक सरकारी संस्थान होने के बावजूद छऊ के साहित्य निर्माण का नहीं होना हास्यास्पद प्रतीत होता है। इतनी बड़ी कला जिसे विश्व सम्मान की नजरों से देखता है, उसे ना तो साहित्य से सजा पाए और ना ही परिपक्व कर पाए। जो अफसोस जनक है। उन्होंने बताया है कि उनकी मांग पर बीते 27 अगस्त को कोल्हान विश्वविद्यालय के सीनेट की बैठक में छऊ की पढ़ाई सरायकेला के काशी साहू महाविद्यालय में होने संबंधी प्रस्ताव पारित किया गया। इससे पूर्व भी छऊ की पढ़ाई को लेकर विश्वविद्यालय में सहमति बनी थी। लेकिन हर बार मामला पुस्तकों के अभाव के कारण स्थगित हो जाता है। जो काफी दुखद और चिंतनीय है।

पुस्तकों का अभाव न सिर्फ छऊ की पढ़ाई पर प्रश्नवाचक चिन्ह है बल्कि छऊ की निरंतरता एवं उत्तरजीविता पर भी प्रश्न खड़े करता है। आखिर गुरु शिष्य परंपरा द्वारा कब तक छऊ को बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया है कि छऊ नृत्य कला में गुरु शिष्य परंपरा आज तक सजीव है। यह सुखद अनुभूति है। लेकिन आज के आर्थिक जगत की कवायद में क्या गुरु शिष्य परंपरा का शत प्रतिशत आत्मसातीकरण संभव है? आधुनिक समाज में गुरु शिष्य परंपरा के भरोसे विश्व स्तरीय धरोहर को संरक्षित रखने का विचार पालना किसी भी दृष्टिकोण से बुद्धिमत्ता का परिचायक नहीं है।

साहित्य निर्माण को लेकर लोगों एवं सरकार में रुचि का ना होना या उदासीन होना छऊ के अवसान के लिए अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करने जैसा है। छऊ की परंपरा को सुरक्षित एवं संरक्षित रखते हुए इसके उत्तरोत्तर उन्नयन के लिए इसके साहित्य का सृजन अति आवश्यक एवं एकमात्र बौद्धिक कदम है। जो छऊ के सम्मान और धरोहर रूप में उसकी मर्यादा को सुरक्षित रख सकता है। इसलिए उन्होंने मांग की है कि छऊ के पुस्तक निर्माण में सहयोग एवं आवश्यक मार्गदर्शन दिया जाए।

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