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मुरुप में दहकते अंगारों पर चलकर भक्त दिखाएंगे हट भक्ति…

सरायकेला: संजय मिश्रा

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सरायकेला: सरायकेला प्रखंड के मुरुप गाँव में देवी वनदुर्गा मां के प्रति भक्तों की आस्था कहिए या देवी वनदुर्गा की असीम कृपा लेकिन यह सच है कि यहां माता को प्रसन्न करने के लिए भक्त कई आकर्षक व हैरतअंगेज करतब दिखाते हैं। यह आस्था व भक्ति आज नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है जो आज के कंप्यूटर युग में भी जारी है। मुरुप निवासी हेमसागर प्रधान ने जानकारी देते हुए बताया कि गाँव में स्थित दुर्गा मन्दिर में स्थापित माता देवी वनदुर्गा के प्रतिमा की पूजा विधिवत दशमी से 15 दिन पहले शुरू हो जाती है। दशमी के बाद एकादशी के दिन यहां माता की भव्य पूजा अर्चना की जाती है।

एकादशी के दिन 25 अक्टूबर को स्थानीय जलाशय से जल देवी की पूजा अर्चना कर भक्तों द्वारा दंडी पाठ करते हुए मन्दिर परिसर पहुंचेंगे। मन्दिर पहुँचने से पहले भक्तों से लोग अपने घरों में परिवार की सुख शांति व समृद्धि हेतु पूजा अर्चना कराते है। इस दौरान भक्तों द्वारा माँ को प्रसन्न करने के लिए कई आकर्षक करतब दिखाएंगे। मन्दिर परिसर में माँ पाऊड़ी के समक्ष 20 फीट लंबा व दो फीट चौड़ा व गढ्डा खोदकर अग्निकुंड बनाया गया है। यहाँ देवी माता अग्नि कुमारी की पूजा अर्चना की जाती है। इस पूजा के बाद भक्त देवी को प्रसन्न करने के लिए दहकते अंगारों पर नंगे पांव दौड़ेंगे। देवी वनदुर्गा की असीम भक्ति की कृपा से इन भक्तों के पांव में छाले तक नहीं पड़ते हैं। मन्नत के अनुसार महिला व पुरुष अपने अराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए कंटीले झाड़ियों पर लेटकर भक्ति की परीक्षा देते हैं।

भक्तों के करतब को देखने के लिए प्रतिवर्ष यहां पड़ोसी जिला समेत आसपास के हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती हैं, जिसकी निगरानी श्री श्री शुभनाथ क्लब, मुरुप द्वारा की जाती है। यहां देवी वनदुर्गा की पूजा देउरी द्वारा की जाती है। मंदिर में कई साल से पूजारी के रूप में रामनाथ होता, गौर दास व कुथलु प्रधान द्वारा पूजा कराई जा रही है। पुजारी रामनाथ होता ने बताया कि माता की असीम कृपा के कारण माता के दरबार में भक्तों द्वारा सच्ची मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।

पुजारी गौर दास ने बताया कि देवी माता वनदुर्गा पर सच्ची आस्थापूर्वक नंगे पांव अंगारों पर चलने के बावजूद भक्तों के पांव में छाले नहीं पड़ते है। पुजारी कुथलु प्रधान ने बताया कि यहाँ एक ओर भक्त अपनी फरियाद लेकर माँ के दरबार में अर्जी लगाने आते है, वहीं दूसरी ओर भक्त अपनी मन्नते पूरी होने पर माँ का आभार प्रकट करने के लिए दरबार में पहुँचते है। फलतः इस अवसर पर भक्तों की भीड़ लग जाती है।

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