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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष: अलौकिकता का परिचायक है बड़ा कांकड़ा स्थित प्राचीन भगवान श्री राधा कृष्ण मंदिर; यहां…

स्वयं विराजते हैं भगवान श्रीकृष्ण; कभी यहां बजा करती थी कान्हा की मुरली; चोर भी नहीं चुरा सके भगवान की प्राचीन मूर्ति।

सरायकेला:संजय मिश्रा

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सरायकेला। महाप्रभु जगन्नाथ की नगरी कहे जाने वाले सरायकेला में भगवान श्रीकृष्ण के पूजन उत्सव की परंपरा अलौकिक रही है। यहां की सरायकेला के कंसारी टोला स्थित मृत्युंजय खास श्री राधा कृष्ण मंदिर और दुर्गा मैदान स्थित रास मंदिर की अपनी विशेष मान्यता रही है। जबकि सरायकेला नगर से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर स्थित बड़ा काकड़ा गांव में अवस्थित प्राचीन कालीन श्री राधा कृष्ण मंदिर की अपनी विशेषता और अलौकिकता का इतिहास रहा है।

जिसकी पूजन परंपरा आज भी ग्राम क्षेत्र में विद्यमान है। बताया जाता है कि उक्त श्री राधा कृष्ण मंदिर के निर्माण का समय किसी को भी ज्ञात नहीं है। इसलिए उक्त श्री राधा कृष्ण मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान द्वारा कराया हुआ माना जाता है। इतना ही नहीं मंदिर के कपाट हमेशा भक्तों के लिए खुले रहते हैं।

जिसमें श्री राधा कृष्ण की काले पत्थर की छोटे आकार की प्राचीन मूर्तियां विद्यमान है। पुरातात्विक महत्व होने के कारण तकरीबन तीन बार चोरों ने भगवान श्री राधा कृष्ण की उक्त मूर्ति को चुराने का प्रयास भी किया है। परंतु मूर्ति चुराने के ठीक दूसरे दिन चोरों ने मूर्ति को स्वयं वापस लाकर मंदिर में स्थापित कर दिया है।

1960 के दशक तक यहां बजा करती थी भगवान श्री कृष्ण की मुरली:-
गांव स्थित श्री राधा कृष्ण मंदिर के पुजारी नंद मिश्रा और लखन मिश्रा बताते हैं कि 1960 के दशक तक प्रत्येक प्रातः 3:00 बजे से मंदिर से बांसुरी की मधुर धुन बजा करती थी। जिसे दूर-दूर तक सुना जा सकता था। और इसके साथ ही गांव के लोगों की दिनचर्या शुरू हुआ करती थी। 1960 के दशक में मंदिर के गुंबज के क्षतिग्रस्त होने के बाद से मुरली की आवाज आनी बंद सी हो गई है।

आज भी गांव की आबादी का श्री राधा कृष्ण के दर्शन के बाद शुरू होता है दिन:-
वर्तमान में भी गांव के लोगों के आराध्य श्री राधा कृष्ण के दर्शन के बाद ही गांव के लोगों के दिन की शुरुआत होती है। स्थानीय ग्रामीण जन प्रातः समीप के प्राचीन चापा पोखरी में स्नान करने के पश्चात श्री राधा कृष्ण मंदिर पहुंच कर भगवान श्री राधा कृष्ण के दर्शन करने के बाद ही दिन की शुरुआत करते हैं। गांव के लोगों के गहरी आस्था का केंद्र श्री राधा कृष्ण मंदिर के प्रति मान्यता रही है कि ऐसा नहीं करने से शुभता का नाश और संकट के आगमन की स्थिति बनती है।

अलौकिक है चापा पोखरी भी:-
श्री राधा कृष्ण मंदिर के समीप स्थित चापा पोखरी यानी तालाब का इतिहास भी अलौकिक रहा है। प्राचीन काल से चली आ रही प्रचलित कथा के अनुसार ग्रामीण बताते हैं कि पूर्व के समय में किसी भी तरह के समारोह आयोजन के लिए भगवान श्री राधा कृष्ण से प्रार्थना कर चापा पोखरी के समीप जाकर निवेदन करने से चापा पोखरी द्वारा निवेदन के आधार पर खाने के लिए थाली और ग्लास उपलब्ध कराया जाता था। कहा जाता है कि समारोह में थाली और ग्लास के उपयोग के बाद अच्छी तरह से साफ कर चापा पोखरी के समीप प्रार्थना कर रख देने पर चापा पोखरी थाली और ग्लास को वापस अपने में समाहित कर लेती थी। परंतु थाली या ग्लास में जरा भी जूठन होने पर उसे चापा पोखरी द्वारा वापस स्वीकार नहीं किया जाता था।

संरक्षण की है आवश्यकता:-
हालांकि उक्त श्री राधा कृष्ण मंदिर एवं उक्त चापा पोखरी तालाब को लेकर आध्यात्मिक विकास और कथाएं प्रचलित हैं। जिस पर तथ्यात्मक दृष्टिकोण भी जाहिर किया जा सकता है कि विशिष्ट प्राचीन शैली से बनी उक्त श्री राधा कृष्ण मंदिर के गुंबद से हवाओं के टकराकर गुजरने से सुरीली बांसुरी की आवाज निकलना संभावित है। बहरहाल स्थानीय जनों की आस्था और तथ्यात्मक पहलू के बीच लगभग ढहने की कगार पर पहुंचे उक्त प्राचीन श्री राधा कृष्ण मंदिर के संरक्षण की नितांत आवश्यकता बताई जा रही है।

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