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हम किस और जा रहे हैं ?  : मनोज कुमार चौधरी।

सरायकेला। संस्कृति और संस्कारों के पोषक रहे सरायकेला नगर पंचायत के उपाध्यक्ष मनोज कुमार चौधरी से देश विदेश में घट रही घटनाओं पर हुई बातचीत के दौरान कुछ कटु सामने आए। जिसके तहत इस वैज्ञानिक युग में जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को छोटी से छोटी वस्तु शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण चाहिये साथ ही साथ वैज्ञानिक धरातल पर सत्यपरक होनी चाहिये। वहीं हम भारतीय आज सांस्कृतिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाते हुये अविकसित सभ्यताओं की परंपराओं का अंधानुकरण करने को अपनी आधुनिकता समझते हैं। परिणाम स्वरूप हमारा नैतिक एवं सांस्कृतिक पतन होता चला जा रहा है।

भारत में विज्ञान और विद्वता के नाम पर सांस्कृतिक मूल्यों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करके उनकी गरिमा को ध्वस्त कर दिन प्रतिदिन रीति-नीति-परम्परा को तिलांजलि दी जा रही है। इस वैज्ञानिकता के नाम स्वछंदता रूपी नग्नता एवं उच्छृंखलता के महाभीषण समय में जो शिवापूजा में प्रयुक्त दूध से लेकर कन्यादान तक में अपना अपना तर्क देते फिरते हैं। गली मोहल्लों में भारतीय व्रतों त्योहारों के प्रति दोषारोपण करते फिरते हैं। ऐसे कोई भी वैज्ञानिक,तार्किक,विद्वान एवं बुद्धिजीवी वर्ग दुनिया के सबसे बड़े छलावे प्रथम जनवरी नववर्ष के औचित्य और वैज्ञानिकता पर अपनी विद्वता प्रकट भी नहीं करते। साथ ही साथ उसी के नशे में धुत्त होकर अपनी आधुनिकता का नग्न प्रदर्शन करते हुये यत्र तत्र देखे जा सकते हैं। और उनसे बड़े वाले वो हैं जो डींगें तो भारतीय संस्कृति, परम्परा,त्योहार एवं व्रत के पालक,संरक्षक एवं संवाहक बताते हुये फिरते हैं। वे भी इसी अंधानुकरण में डूबे ही दिखते हैं। दुर्भाग्य है कि भारत जिसका शाब्दिक अर्थ ही है ज्ञानोपासक उस भारत की संताने अज्ञान के सन्मुख नतमस्तक होकर उनको सिरपर रखकर नाच रही हैं।

ये वही भारत है जिसके पूर्वजों ने कृण्वन्तो विश्वमार्यम का उद्घोष कर समस्त संसार को ज्ञान से आलोकित कर संस्कारित किया।भाषा, भोजन, वेशभूषा और व्यवहार सिखाया। दुनिया की नग्नता को अपनी बौद्धिक आभा के प्रभाव से ढककर मनुष्य जाति को पशुता से ऊपर उठाकर चेतना के सर्वोच्च शिखर पर अधिष्ठित किया। उन भारतीय महाविभूति पूर्वजों की संताने आज कबीलों से उत्पन्न काल्पनिक बातों को सिर पर रखकर गौरान्वित हो रही हैं।

आज स्वयंप्रभा सम्पन्न,स्वयंभू आर्य भगवान स्वयंभू मनु की संतानें उनको आदर्श मानकर चल रही हैं। जिन्होंने अपना पूर्वज ही बंदरों को स्वीकार कर रखा है। ऐसी मूढ़ता धिक्कार है। हे दिग्विजयी पूर्वजों की श्रेष्ठ संतानों अपने आपको पहचानों आप अंधानुकरण न करो। आपके पूर्वजों ने केवल आपके लिये नहीं अपितु समस्त मानवजाति के लिये सबसे उत्कृष्ट ज्ञान,विज्ञान,दर्शन,अध्यात्म,संस्कार संस्कृति,व्रत,त्योहार,पर्व,परम्परा,भोज,वेश,भाषा आदि सबकुछ जो मनुष्यता के उत्थान में सहायक है। पूर्व से ही सृजित करके,व्यवस्था करके और स्थापित करके गये हैं।

आपको किसी का अंधानुकरण करने की आवश्यकता नहीं अपितु अपने पूर्वजों की सर्वोत्कृष्ट विरासत की रक्षा एवं पालन करते हुये उनको बढ़ाने तथा परिमार्जित एवं परिष्कृत करने का प्रयास करें।

ऐतिहासिक, प्राकृतिक,वैज्ञानिक, तार्किक धरातल पर जो सत्य हो उसको

स्वीकारें अंधानुकरण बंद करें।

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