सरायकेला-खरसावां(संजय मिश्रा) सरायकेला जिला मुख्यालय महालिमोरुप,सीनी व राजनगर समेत आसपास के क्षेत्रो में सोमवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाएगी। मंदिरों में जन्माष्टमी की तैयारी जोर-शोर से हो रही है जहां कोविड-19 गाइडलाइन के बीच भव्य पूजा व आरती होगी। मंदिरों के पुजारी पूरे विधि-विधान से मध्य रात्रि में भगवान श्री कृष्ण की पूजा करेंगे व जन्मोत्सव मनाएंगे। इधर,क्षेत्रीय गौड़ समाज महालिमोरुप के तत्वाधान में जगन्नाथपुर के रांगाटांड में भव्य रुप से श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाएगा जिसकी तैयारी पूरी हो चुकी है। कृष्ण भक्तों सहित सभी लोगों के लिए जन्माष्टमी व्रत के साथ कृष्णावतार महत्वपूर्ण है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। 30 अगस्त को रात्रि करीब दो बजे तक अष्टमी रहेगी। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस दिन पूजा करने से निरूसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है। इस व्रत को अवश्य करना चाहिए।
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भगवान श्रीकृष्ण गौड़ समाज के कुलदेवता है — शम्भुनाथ
सरायकेला क्षेत्रीय गौड़ समाज के सलाहकार सह सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक शंभूनाथ प्रधान ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण गौड़ समाज के कुलदेवता है इसीलिए समाज के सभी लोगों को विधिपूर्वक भगवान श्री कृष्ण का पूजा अर्चना करना चाहिए उन्होंने बताया कि भगवान श्री कृष्ण का लालन-पालन नंद जी गौड़ के घर में हुई यानी भगवान श्री कृष्ण गौड़ जाति के घर में बड़े हुए इसलिए गौड़ जाति भगवान श्री कृष्ण को कुल देवता के रूप में मानते हैं उन्होंने बताया की कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। बताया कंस की एक बहन देवकी थी जिसका विवाह वासुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक बार आकाशवाणी हुई कि देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा। इसके बाद कंस ने बहन व बहनोई को कारागृह में डाल दिया। जहां कंस ने वासुदेव-देवकी के एक एक करके सात बच्चे को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। इसके बाद जब वसुदेव-देवकी को आठवा पुत्र पैदा हुआ उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ। उसी समय वासुदेव नवजात शिशु रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया। इसके बाद कंस को सूचना मिली कि वासुदेव देवकी को बच्चा पैदा हुआ है। तब कंस ने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा अरे मूर्ख मुझे मारने से क्या होगा तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण का लालन पालन नंद जी व यशोदा के घर हुई तब से गौड़ समाज श्रीकृष्ण को कुलदेव के रूप में मानते है।