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कंपनी कर रही है स्थानीय लोगों से छलावा, हक और रोजगार मिलने तक जारी रहेगा धरना।

सरायकेला-खरसावां (संजय मिश्रा) बुधवार को हुई त्रिपक्षीय वार्ता के बाद भी सरायकेला खरसावां जिला अंतर्गत चांडिल प्रखंड के हुमीद स्थित बिहार स्पंज आयरन लिमिटेड कंपनी द्वारा किए जा रहे वादाखिलाफी को लेकर सैकड़ों की संख्या में रैयतदारों ने गुरुवार को कंपनी गेट पहुंचकर गेट जाम कर दिया, और पांच ग्राम विस्थापित एवं प्रभावित समिति के नेतृत्व में अनिश्चितकालीन धरना पर बैठ गए।

 

इस दौरान कंपनी गेट पूरी तरह से जान हो जाने के कारण ना तो कोई कंपनी से बाहर आप आ रहे हैं और ना ही अंदर जा पा रहा है। कंपनी गेट जाम कर रहे रैयतदारों द्वारा कंपनी में सभी प्रकार के वाहन के प्रवेश और निकलने पर भी रोक लगाकर रख दी गई है। इसके कारण कंपनी के भीतर फंसे लोगों सहित आने जाने वाले हमको भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
कंपनी गेट जाम और धरना प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे पांच ग्राम विस्थापित एवं प्रभावित समिति के अध्यक्ष आशुतोष बेसरा ने कहा कि रैयतदारों की एक सूत्री मांग है कि पहले स्थानीय और कंपनी के रैयतदारों को कंपनी में रोजगार दिया जाए। परंतु कंपनी इन्हें छोड़ कर बाहरी लोगों से काम लेना चाहती है। जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। और जब तक स्थानीय लोगों, विस्थापित एवं प्रभावितों रैयतदारों को रोजगार नहीं मिलता है, अनिश्चितकाल के लिए कंपनी गेट को पूरी तरह से जाम रखते हुए धरना जारी रखा जाएगा।

बुधवार को हुई थी त्रिपक्षीय वार्ता :-

बीते बुधवार को चांडिल अनुमंडल के सभागार में स्थानीय विधायक सविता महतो, चांडिल अनुमंडलाधिकारी रंजीत लोहरा, पांच ग्राम विस्थापित एवं प्रभावित समिति तथा कंपनी प्रबंधन के बीच त्रिपक्षीय वार्ता की हुई थी। जिसमें कंपनी प्रबंधन द्वारा रोजगार देने के मुद्दे पर स्पष्ट सहमति नहीं देने के कारण रैयतदारों द्वारा कंपनी गेट जाम किए जाने की स्थिति बनी बताई जा रही है। हालात इसे लेकर आगामी 22 सितंबर को एक और बैठक बुलाई गई है।

क्या है मामला :-

बताया जा रहा है कि 9 अगस्त 2013 को बिहार स्पंज आयरन एंड कंपनी लिमिटेड में शटडाउन हो गया था। जिसमें 227 विस्थापित एवं प्रभावित काम कर रहे ग्रामीण बेरोजगार हो गए थे। अब राज्य को पहले से ही 500 करोड़ का चूना लगा चुके आधुनिक कंपनी द्वारा बिहार स्पंज आयरन एंड कंपनी लिमिटेड को ठेके पर लिया जा रहा है। और स्थानीय बेरोजगारों, विस्थापितों एवं प्रभावित रैयतदारों को रोजगार नहीं देकर बाहरी लोगों को कंपनी में रोजगार दिए जाने की बात बताई जा रही है। जिससे एक ओर जहां क्षेत्र में स्थानीयता को लेकर लोगों में आक्रोश देखा जा रहा है। वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा 75% स्थानीय लोगों को निजी कंपनियों में रोजगार दिए जाने को लेकर बनाए गए कानून को भी कंपनी प्रबंधन द्वारा ठेंगा दिखाया जा रहा है। क्षेत्र में एक ओर लंबे समय अंतराल 8 सालों के बाद कंपनी के दोबारा शुरू होने की खुशी देखी जा रही है। तो दूसरी ओर स्थानीय बेरोजगारों को कंपनी में रोजगार नहीं दिए जाने से लोगों में भारी गुस्सा भी देखा जा रहा है। बहरहाल पूरे मामले में सरकार के निजी कंपनियों में रोजगार को लेकर नए नीति नियम के तहत स्थानीय बेरोजगार युवक-युवतियों को कंपनी में रोजगार मिलने या नहीं मिलने की स्थिति देखना आने वाले समय में दिलचस्प हो सकता है।

आशुतोष बेसरा, अध्यक्ष समिति

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