सरायकेला। कुमार पुर्णिमा के तौर पर प्रचलित सरायकेला में शरद पूर्णिमा को परंपरागत तरीके से मनाया गया। इस अवसर पर कुंवर पुनेई मनाते हुए अल्पवयस्क छोटे बच्चों ने घर घर और दुकानों में जाकर कुंवर पुनेई का दान मांगा। परंपरा अनुसार दान में प्राप्त सभी सामग्री का अगले दिन सामूहिक रूप से बच्चों द्वारा वनभोज के रूप में आनंद लिया गया। मान्यता है कि कुंवर पुनेई के अवसर पर इस परंपरा के निर्वहन करने से जीवन में शांति और शीतलता का विकास होता है।
इधर शरद पूर्णिमा के अवसर पर परंपरागत पूजा विधान भी किए गए। जिसमें सत्यनारायण व्रत कथा सहित खीर प्रसाद का सेवन किया गया। इसके तहत घरों में खीर पका कर चंद्रमा की रोशनी में उसे रखा गया। जिसके बाद सामूहिक रूप से उक्त खीर का सेवन किया गया। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रमा अपने सबसे सुंदर रूप में नजर आता है। आर इस अवसर पर चांदनी के रूप में अमृत वर्षा होती है। जो सुंदर काया और स्वस्थ मन प्रदान करने वाला माना जाता है।
राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र के निदेशक गुरु तपन कुमार पटनायक बताते हैं कि शरद पूर्णिमा धरती पर समुचित जीवन के लिए शांति और शीतलता प्रदान करने वाला अवसर माना गया है। जिसे लेकर सरायकेला छऊ नृत्य कला में शरद शशि नामक छऊ नृत्य का सृजन किया गया है। जिसमें “आसो जनो मामू शरद शशि; मोकामू हाथो पोड़ो रे खुशी” के थीम के साथ शरद पूर्णिमा के अवसर पर प्रकृति के सभी कलाओं को प्रदर्शित किया जाता है।