Spread the love

घाटशिला (रिपोर्ट ✍: दीपक नाग)  _एक बार कोविड संक्रमण अपना फन उठाने से बाज न आया । इसका चेन ब्रेक करने के लिए झारखंड सरकार ने भी 22 अप्रैल से 29 अप्रैल तक मिनी लाॅकडाउन का बिगुल फूंक दिया । पुलिस और नगर प्रशासन ने कमर कस कर लाॅकडाउन के गाईड लाईन को अम्ली जामा पहने के लिए मैदान में कमर कस के उतर चुका है । झारखंड सरकार ने भी **स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह** के रूप मे इस लाकडाउन को पालन करने की अपील की है । इस वर्ष से अधिक समय से सारे लोग इस प्रकोप को झेल रहा है । राजा हो या रंक सबकी आर्थिक अवस्था मे काफी गिरावट हुई है । जीवन भी जरूरी है और भोजन भी जरूरी है । भोजन के अलावे अनेक अनिवार्य वस्तु हर परिवार को जरूरत होती है । इन जरूरतों को पुरा करने के लिए पैसे की जरूरत होती है । मेरा यह धारणा तब सच होता दिखाई दिया, जब घाटशिला के सर्कस मैदान मे हरा सब्जी लेने मै पहूंचा । दो नन्ही बच्ची अपने बागीचे का कुछ सब्जीयां बेच रही थी । आर्थिक मंदी के कारण बाजार का रफतार भी काफी कमजोर था । दोनो सगी बहन घाटशिला प्रखंड के किसी गांव से सामान बेचने के लिए आयी थी । एक खरीदार के रूप मे मै बातों ही बातों में मै कुछ सवाल किया तो पता चला । उसके पिता जमशेदपुर मे देहाड़ी मजदूरी करने जाते थे, जो कि पीछले एक साल से ट्रेनों का कम चलने के कारण घर मे बैठ गये । घर काफी आर्थिक तंगी से गुजर रहा है । बच्चों के पिता रोजगार के तलाश में आस-पास के गांवों गये है । घर मे तेल – मसाला वगैरह कुछ भी नही है । सब्जीयां बिक जाए तो लौटते हुए जरूरत मंद सामान ले जाएगी दोनो बहनें । मां घर मे इंतजार में है । यह दृश्य और हालात न जाने पुरे प्रदेश मे कितने होंगे इसका डाटा किसी भी मंत्रालय के पास नही है । जब की यही जमिनी हकिकत है । कोविड के इस दौर मे मांता-पिता को अपने बच्चों को जोखिम लेकर बाजार भेजना पड़ा। झारखंड राज्य खनिज संपदा से अमीर होने के बावजूद राज्य के अधिकांश लोग गरीब है । दैनिक मजदूरों के लिए उपयुक्त ट्रेनों का एक साल से अधिक समय से बंद होने के कारण घाटशिला अनुमंडल का आर्थिक आमदनी का रफतार नीजी क्षेत्र और देहाड़ी मजदूरों के लिए *शुन्य** हो गया है । घाटशिला अनुमंडल में आज तक किसी सरकार ने एक गायता-कुदाल का भी छोटा सा फैक्ट्री नही खुलवाना पाया । झारखंड अलग राज्य होकर बालिग हो गया है । पर आर्थिक दृष्टि कोण से अपाहिज समान प्रतीत होता है।  वर्णा दोनो बहनों के हाथों में किताब कलम के जगह तराजू न होता । बहरहाल, देखना है कि, कोविड संक्रमण का खौफ लोगों पर भारी है या पापी पेट।_

Advertisements
Advertisements
Advertisements

You missed