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घाटशिला (दीपक नाग ) – ऐतिहासिक गवाह है जब-जब बड़ी- बडी लड़ाईयां हथियारों से जीती गई है । परन्तु पेट की लडाई हमेशा मेहनत से जीती गई। एक दशक से जहाँ झारखंड  के किसानों को नक्सलवाद से जुझना पड़ा । यूं कहें कि किसानों को हर वक्त अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा है । ऐसे ही लड़ाई घाटशीला के किसान एक दशक से हल और हथियार के बीच लड़ती रही ।आखिरकार जीत  हल की ही हई। एक दशक पूर्व नक्सली समस्या से जूझ रहा है यह पहाड़ी इलाके अब हरित क्रांति की ओर एक कदम चल पड़ा ।

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_घाटशिला अनुमंडल के डुमरिया प्रखंड अंतर्गत पलाश बनी पंचायत के बड़ा बोतला गांव हांडीभंगा के जयंत सरदार ने 3 एकड़ जमीन पर छः प्रकार  के सब्जी एवं तरबूज की खेती कर दिखा दिया। कभी नक्सली का गढ़ माने जाने वाले हरियाणा कुरियन एवं हरीभंगा सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र में हरियाली हरियाली छा गए है । पानी की कमी के कारण नुकसान तो हुआ है लॉक डाउन की वजह भी किसान को दोहरी नुकसान हो रहा है जयंत सरदार का मानना है पानी की सुविधा होता तो मेरे पास 24 एकड़ जमीन है मैं 20 एकड़ में सब्जी का खेती करता । जबकि उसका भतीजा तमिलनाडु काम के लिए चला गया था वह भी लाॅक डाउन के कारण  लौटकर चाचा के साथ  खेती में  लग गया बताते चलें एक समय नक्सलियों का बोलबाला था इस क्षेत्र में लोग शाम होते हैं घर पर दुबक जाते थे और पहाड़ी के नीचे होने कारण नक्सली शाम को खाना मांगने ग्रामीण क्षेत्र में आ जाते थे।

एक तालाब था इसका पानी से ही सब्जी का खेती  हो रही थी  ।परन्तु  गर्मी के कारण  तालाब में पानी नहीं रहा अब बारिश पर ही निर्भर  है  वही ग्रामीण किसानो को  सरकार का कहना है अगर तालाब का खुदाई एवं सफाई  किया जाये तो यहां के तालाब में
पानी सालों भर रहेगी ।   साथ ही एक सिंचाई के लिए डीप बोरिंग की व्यवस्था हो तो सब्जी की खेती और बढ़िया तरीका से किया जा सकता है । जबकि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कई विकास योजना सरकार के पास है ।
इस योजना का लाभ हम ग्रामीणों
इस आपदा की घड़ी को अवसर में बदला जा सकता है । साथ ही क्षेत्र से मजदूरों का पलायन पर अंकुश लग सकता है । 

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