राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र सरायकेला का सफरनामा…..
खपरैल मकान से भव्य भवन तक का 62 वर्षों का सफर…..
सरायकेला। एक झोपड़ीनुमा खपरैल मकान से भव्य कला केंद्र तक के सफर तय कर राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र सरायकेला अपना 62वीं वर्षगांठ मना रहा है। वर्ष 1960 में स्थापित इस कला केंद्र ने अभावों के दर्जनों पतझड़ झेलने के बाद आज सावन की हरियाली के रूप में अपने आप को स्थापित किया है।
विधिवत रूप से वर्ष 1961 से अस्तित्व में आए उक्त कला केंद्र का प्रारंभिक ठौर सरायकेला के वार्ड नंबर 4 स्थित एक झोपड़ीनुमा खपरैल मकान था। परंतु छऊ नृत्य कला के प्रभाव को देखते हुए इसे कालांतर में वार्ड संख्या 7 स्थित पाटरासाई मोहल्ले में एक जर्जर भवन में स्थानांतरित किया गया था। जिसमें प्रशिक्षण कक्ष के साथ-साथ 2 कमरों वाले छात्रावास की सुविधा भी उपलब्ध थी।
परंतु उक्त भवन की अत्यधिक जर्जरावस्था को देखते हुए भवन की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। जिसे एक भव्य कला केंद्र के रूप में 15 जून 2006 को पाया गया। नाट्य शेखर बन बिहारी पटनायक उक्त कला केंद्र के प्रथम निदेशक बने। जिसके बाद पद्मश्री गुरु केदारनाथ साहू वर्ष 1973 से लेकर 1988 तक, प्रदीप कर 1988 से लेकर 1989 तक, पद्मश्री शशधर आचार्य 1990 से लेकर 1994 तक और गुरु तपन कुमार पटनायक 7 जुलाई 1994 से लेकर वर्तमान तक राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र सरायकेला के निदेशक रहे हैं।
छऊ नृत्य कला केंद्र सरायकेला में विभिन्न विधाओं को लेकर छऊ नृत्य, मास्क मेकिंग एवं वाद्य यंत्रों की शिक्षा दी जाती है। केंद्र के पदेन अध्यक्ष जिले के उपायुक्त और सचिव सरायकेला अनुमंडलाधिकारी होते हैं।
कला केंद्र का आर्काइव संजो रहा इतिहास :-
तत्कालीन उपायुक्त राजेश कुमार शर्मा एवं सरायकेला अनुमंडलाधिकारी चंद्र कुमार सिंह के प्रयासों से कला केंद्र को नया पंख मिला। अगस्त 2009 में कला केंद्र में छऊ की समग्र जानकारी के लिए आर्काइव की स्थापना की गई। जिसमें सरायकेला छऊ के पुरोधाओं और उनके नृत्य प्रदर्शन के दुर्लभ चित्रों को संग्रहित किया गया है।
सैलानियों का आना हुआ है कम :-
विगत कुछ वर्षों में छऊ नृत्य कला का सम्मान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बखूबी स्थापित हुआ है। जहां यूनेस्को ने इसे इनटेंजिबल हेरीटेज का महत्व दिया है। वही छऊ नृत्य कला के क्षेत्र में 7 छऊ गुरुओं को पद्मश्री का सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके साथ ही राज्य सरकार ने चैत्र पर्व को राजकीय महोत्सव का दर्जा भी प्रदान किया है। बावजूद इसके पूर्व के समय में छऊ नृत्य कला सीखने और देखने पहुंच रहे विदेशी सैलानियों का आगमन अब नहीं के बराबर रह गया है। हालांकि बीते 2 साल कोरोना की लहर के बीच आयोजन भी सिर्फ परंपरा निर्वाह तक सिमट कर रह गया है