विशेष खोज खब्रर……
( संजय मिश्रा )
ऊंची दुकान फीकीं पकवान सरायकेला का सदर अस्पताल
मानव संसाधन की कमी के कारण सरायकेला का सदर अस्पताल 14
सालों में भी नहीं बन पाया जिला अस्पताल……
(ऐसे ही नहीं सरायकेला के रेफरल सदर अस्पताल को रेफर सदर अस्पताल का नाम दिया जाता है)
सरायकेला। अच्छी साजो सजावट वाली दुकान के खराब सर्विस पर अक्सर कहा जाता है कि ऊंची दुकान फीकी पकवान। सरायकेला का सदर अस्पताल भी डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मियों के अभाव में उक्त कहावत को चरितार्थ करते हुआ देखा जा रहा है। जहां मात्र 14 डॉक्टरों के बदौलत सदर अस्पताल सरायकेला में सात विभाग संचालित किए जा रहे हैं। इसी प्रकार बिना ड्रेसर का जिले का सबसे बड़ा सदर अस्पताल का इमरजेंसी, लेबर रूम और इंडोर तथा आउटडोर स्वास्थ्य सेवाएं संचालित की जा रही हैं। इतना ही नहीं सदर अस्पताल में सुरक्षा को लेकर दिन हो या रात के लिए एक भी सिक्योरिटी गार्ड नहीं है। जिसके कारण अक्सर मरीजों के परिजनों द्वारा या असामाजिक तत्वों द्वारा भी सरायकेला सदर अस्पताल में कारनामे किए जाते रहे हैं।
आइए देखें जिले के सबसे बड़े सरकारी सदर अस्पताल में मानव संसाधन की व्यवस्था –
सरायकेला स्थित जिले के सबसे बड़े सरकारी सदर अस्पताल में 7 विभाग इमरजेंसी, इंडोर, लेबर रूम, शिशु के लिए एसएनसीयू, ओपीडी, कुपोषित बच्चों के लिए एमटीसी और बच्चों के लिए पीआईसीयू संचालित हैं। यहां सभी विभागों को देखते हुए डॉक्टरों के कुल 26 पद स्वीकृत हैं। परंतु मात्र 14 डॉक्टर ही सदर अस्पताल में पदस्थापित हैं।
सदर अस्पताल सरायकेला में सभी विभागों के अनुसार 24 जीएनएम नर्सों की आवश्यकता है। जिसके एवज में मात्र आठ जीएनएम नर्स पदस्थापित हैं। और प्रतिनियुक्ति के आधार पर 13 एएनएम से सदर अस्पताल का संचालन किया जा रहा है। मजे की बात है कि सदर अस्पताल सराइकेला के लिए एक भी एएनएम या जीएनएम की हाल ही नहीं हुई है। जिन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से प्रतिनियुक्ति करा कर काम चलाया जा रहा है। जिले के सबसे बड़े सरकारी सदर अस्पताल में एक भी ड्रेसर नहीं है। जबकि यहां प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाओं और अन्य दुर्घटनाओं के मामले आते रहते हैं।
इमरजेंसी विभाग और लेबर रूम जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी एएनएम के द्वारा ड्रेसिंग करने के भरोसे चलाया जा रहा है। इमरजेंसी में अचानक से ज्यादा दुर्घटना वाले मामले आज आने पर स्टाफ की कमी के कारण मैनेज करना अस्पताल वालों के लिए मुश्किल हो जाता है।
स्टाफ की कमी के कारण सदर अस्पताल में संचालित युवा मैत्री केंद्र जैसा महत्वपूर्ण विभाग भी तत्काल बाधित है। इंडोर में औसतन 40 से 50 मरीज भर्ती रहते हैं। जिन्हें एक-एक एएनएम के सहारे तीन शिफ्ट में संचालित किया जा रहा है। जबकि प्रत्येक शिफ्ट में कम से कम दो-दो एएनएम की आवश्यकता होती है। लेबर रूम में अधिक पेशेंट की संख्या होने के कारण एक या दो स्टाफ के भरोसे तीन शिफ्ट चलाना अस्पताल प्रबंधन के लिए मुश्किल बना हुआ है। जब भी प्रत्येक शिफ्ट में तीन से चार स्टाफ की आवश्यकता होती है।
मजेदार बात है कि सदर अस्पताल बनने के 14 सालों बाद भी इतने बड़े अस्पताल के लिए सिक्योरिटी की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। दिन हो या रात सिक्योरिटी गार्ड नहीं होने के कारण अक्सर अस्पताल में परेशानियों का सामना करते हुए देखा गया है। जहां बाहर पार्किंग से गाड़ियों के गायब होने से लेकर अंदर मरीज के परिजनों के आक्रोश के समय भी सदर अस्पताल के चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी बेबस देखे जाते हैं।
जाने सरायकेला सदर अस्पताल का सफरनामा –
सरायकेला में पूर्व में संचालित अनुमंडल अस्पताल के बाद सदर अस्पताल सरायकेला का निर्माण जिला मुख्यालय को देखते हुए कराया गया था। वर्ष 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा द्वारा पूरे तामझाम के साथ सदर अस्पताल सरायकेला का उद्घाटन किया गया था। तब से लेकर आज तक सदर अस्पताल सरायकेला में संसाधनों का उत्तरोत्तर विकास होता रहा है। परंतु चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी के अभाव में सदर अस्पताल सरायकेला पूर्व की तरह ही अनुमंडल अस्पताल का दर्जा लिए हुए हैं। हालांकि समय-समय पर प्रबुद्ध जनों द्वारा सरायकेला सदर अस्पताल को चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी के कमी को पूरा करने का आश्वासन मिलता रहा है। परंतु 14 वर्षों में इसकी स्थिति में परिवर्तन नहीं हो पाया है।
क्या कहते हैं सदर अस्पताल सरायकेला, अस्पताल प्रबंधक संजीत राय – संचालित विभागों के अनुसार से चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी का घोर अभाव है। सीमित संसाधन विभाग ही सभी विभागों का संचालन किया जा रहा है। परंतु लेबर रुम सहित इंडोर और इमरजेंसी वार्ड में पेशेंट की संख्या बढ़ने पर परेशानी का सामना करना पड़ता है।