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ग्रास रूट पर हो छऊ कला का विकास; जिले के सभी विद्यालयों में पारा शिक्षक की तर्ज पर बहाल किए जाएं छऊ के शिक्षक: रजतेंदु रथ…

सरायकेला: संजय मिश्रा

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सरायकेला। वर्ष 2010 में यूनेस्को द्वारा छऊ कला को कला के अनमोल विरासत का दर्जा दिया गया था। परंतु इसके बाद इसके उत्थान एवं संरक्षण तथा प्रसार की दिशा में शून्य प्रयास हुआ है। सरायकेला छऊ नृत्य कला से सात पद्मश्री सहित कई संगीत नाटक अकैडमी अवॉर्डी, स्कॉलर और दर्जनों सीनियर एवं जूनियर फैलोशिप अवार्ड छऊ कलाकारों को प्राप्त है। बावजूद इसके सरायकेला छऊ नृत्य कला की जननी कहीं जाने वाली सराइकेला की धरती पर सरायकेला छऊ नृत्य कला अपनी पहचान और भव्यता स्थापित करने के लिए संघर्ष करती हुई नजर आ रही है।

सीनियर फैलोशिप विजेता युवा छऊ कलाकार रजतेंदु रथ ने उक्त बातें कहीं हैं। उन्होंने कहा है कि सरायकेला छऊ नृत्य कला के संरक्षण और विकास के लिए सरकार के प्रयास से ग्रासरूट पर कार्य किया जाना आवश्यक है। उन्होंने छऊ नृत्य कला को फॉक कल्चरल एक्टिविटीज के तहत जिले के सभी विद्यालयों में प्राथमिक कक्षा से लेकर कॉलेज तक शिक्षा के रूप में उपलब्ध कराए जाने की मांग की है।

उन्होंने पूर्व में अपने इस मांग को लेकर राज्य सरकार और मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर को भी पत्राचार किया है। वे बताते हैं कि इसके लिए पारा शिक्षक की तर्ज पर सरकार के शिक्षण संस्थानों ने छऊ शिक्षक बहाल किया जाना चाहिए। ताकि विद्यालयों में अध्ययनरत शिक्षार्थी इस परंपरागत कला की शिक्षा हासिल कर सकें। जिससे छऊ नृत्य कलाकार बेहतर तरीके से संरक्षण भी संभव हो सकेगा। और बेरोजगारी का दंश झेल रहे छऊ नृत्य कला के जानकार कलाकार भी सम्मानित रोजगार से जुड़ सकेंगे।

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