सरायकेला राजा प्रताप आदित्य सिंहदेव।
मां दुर्गा पूजनोत्सव विशेष:
परंपरागत 16 दिनी मां दुर्गा पूजनोत्सव आज से, शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के रूप में 16 दिनों तक पूजी जाएगी कोल्हान की इष्ट देवी मां पाउड़ी, जिउतिया अष्टमी से लेकर महा अष्टमी तक होगी माता की आराधना…
सरायकेला: संजय मिश्रा । कला, संस्कृति एवं संस्कारों को अपने में संजोए सोलह कलाओं की नगरी कहीं जाने वाली सरायकेला में पूजा संस्कार भी अलौकिक रहे हैं। जहां शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के सोलह दिनों के वार्षिक पूजा का विधान रहा है। जिसका शुभारंभ जिउतिया अष्टमी से यानी कल मंगलवार से शुरू हो जाएगा। और अगले सोलह दिनों तक मां दुर्गा के शक्ति स्वरूपा के रूप में मां पाउड़ी की आराधना आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की महाष्टमी तिथि तक पूरे परंपरागत विधि विधान के साथ की जाएगी। 16 दिनी पूजा के नाम से विख्यात मां दुर्गा के 16 दिवसीय वार्षिक पूजन उत्सव को लेकर तैयारी पूरी कर ली गई है। इसके तहत सरायकेला के राजमहल स्थित मां पाउड़ी मंदिर में सरायकेला राजा प्रताप आदित्य सिंहदेव और रानी अरुणिमा सिंहदेव मंगलवार से 16 दिनी पूजा का शुभारंभ करेंगे। जहां इष्ट देवी मां पाउड़ी की आराधना मां दुर्गा के शक्ति स्वरूपा के रूप में परंपरा अनुसार सरायकेला राजा एवं रानी के द्वारा की जाएगी।
सरायकेला राजा एवं रानी करते हैं मां की आराधना :-
सरायकेला राजमहल स्थित मां पाउड़ी के मंदिर में परंपरा अनुसार सिर्फ राजमाता, राजा, रानी, युवराज एवं देहुरी यानी माता के पुजारी को ही प्रवेश की अनुभूति होती है। 16 दिनों तक आयोजित होने वाले उक्त पूजन उत्सव के अवसर पर प्रतिदिन प्रसाद चढ़ावे का विधान है। जिसका सेवन राज परिवार के सदस्यों द्वारा राजमहल परिसर के भीतर ही किया जाता है। पूजा के समापन दिवस महाष्टमी पर चढ़ाए गए महाप्रसाद का वितरण राज परिवार सहित समस्त भक्तों के बीच किया जाता है।
जिसमें माता की प्रसन्नता के लिए प्रतिदिन बलि अर्पण करने का विधान रहा है। परंपरागत पूजा विधान के अनुसार ढोल, नगाड़ा, चेड़चेड़ी एवं मोहरी वाद्य यंत्रों के गूंज के बीच जागरण करते हुए मां पाउड़ी की पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही भव्य संध्या आरती का आयोजन भी किया जाता है। जिसमें महासप्तमी के दिन राज परिवार द्वारा खेड़, तलवार, बंदूक और तोप की पूजा की जाती है। जबकि महानवमी के दिन नुआखिया मनाते हुए खेतों से ले गए नये अनाज का पहला भोग माता को अर्पण करते हुए प्रसाद स्वरूप सभी भक्तों के बीच वितरित किया जाता है। प्राचीन काल से चली आ रही उक्त पूजा परंपरा आज भी अपने मूल स्वरूप में कायम है।
विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य कला के संगीत एवं धुनों का सृजन है माता की वार्षिक 16 दिनी आराधना:-
सरायकेला माटी की विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य को मंच से निहारते हुए दर्शन एवं कला प्रेमी देश सहित विदेशों में भी इसकी भरपूर सराहना करते हैं। नर्तक छऊ नृत्य की विशेष परंपरागत धुनों पर कदम ताल मिलाते हुए नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। जानकार बताते हैं कि विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य कला के धुनों का सृजन माता के 16 दिनी पूजा से हुआ है। जहां माता की आराधना और जागरण के दौरान 16 दिनों तक परंपरागत वाद्य यंत्रों से अलग-अलग धुन बजाए जाते हैं। जिसको संजोते हुए छऊ नृत्य कला के विशिष्ट धुनों को तैयार किया गया था। जो आज भी छऊ नृत्य कला के कला प्रेमियों के दिलों को देश एवं विदेशों में भी झकझोर रहा है। परंतु बताया जाता है कि समय के साथ और संरक्षण के अभाव में कई परंपरागत वाद्य यंत्रों का साथ अब छूट चुका है।
“क्षेत्र में शक्ति एवं ऊर्जा के संचार के लिए मां पाउड़ी की शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के रूप में 16 दिनों के वार्षिक परंपरागत पूजा का विधान है। जिसका मंगलवार से सभी पूजा संस्कारों के साथ शुभारंभ किया जाएगा।”