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आस्था: परंपरागत चड़क पूजा रविवार को…

1905 से हो रही है भुरकूली-देवगिरीसाई गांव में चड़क पूजा, स्वप्न विचार के साथ यहां प्रकट हुए थे भगवान बाबा विश्वनाथ महादेव…

सरायकेला (संजय मिश्रा ): सरायकेला प्रखंड अंतर्गत भुरकुली गांव में चैत्र पर्व के अवसर पर कई धार्मिक अनुष्ठानों के साथ आयोजित होने वाली चड़क पूजा 10 अप्रैल से 14 अप्रैल तक आयोजित की जा रही है। बताया जाता है कि वर्ष 1905 में यहां पर शिवलिंग का अविर्भाव स्वप्न विचार के साथ हुआ था। इसके बाद से प्रति वर्ष भगवान विश्वनाथ महादेव की भक्ति भावना के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 10 अप्रैल को शुभघट स्थापित कर पूजा का शुभारंभ किया गया।

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12 अप्रैल की अखाड़ा माड़ा का आयोजन किया गया। 13 अप्रैल को भोक्ता उपवास रह कर शुभ घट, यात्रा घट, गरियाभार, कालिका घट लाने के कार्यक्रम संपादित करेंगे। इसी दिन शनिवार की रात रात्रि जागरण के साथ सरायकेला शैली के छऊ नृत्य का प्रदर्शन भी किया जाएगा। हर पार्वती छऊ नृत्य कला केंद्र भुरकुली एवं श्री श्री शिव शक्ति छऊ कला केंद्र देवगिरीसाई समिति के संयुक्त तत्वावधान आयोजित होने वाले उक्त कार्यक्रम में रात्रि जागरण के दौरान सरायकेला शैली में छऊ नृत्य तांडव, धुली खेल, राधा कृष्ण, होली, सूर्य सागरिका, मेघदूत, बंदिर सपनो, माटिर मानुष, देवदासी, मयूर, सागर, बरसात झम-झम, नीमो पंडा, दुर्गा, कोच देवयानी, ऋषि श्रृंग, लव कुश, पहाड़ी कन्या, सीता चोरी, चार अवतार एवं द्वापर नीला नृत्य का प्रदर्शन किया जाएगा।

और अंतिम दिन 14 अप्रैल को संक्रांति के सूर्योदय के साथ देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए भक्त जान को जोखिम में डाल कर कई आकर्षक करतब दिखाऐंगे। जिसे हर कोई देख आश्चर्यचकित रह जाते हैं। इस दौरान भक्त एवं भोक्ता गांजा डांग, चड़क उड़ा पर्व, रजनी फुड़ा, जिव्हा बाण, निया पाट जैसे कई हैरत अंगेज करतब दिखाते हैं। देवता को प्रसन्न करने के लिए भक्त अपने पीठ में लोहे का हुक फंसा कर बैलगाड़ी या ट्रैक्टर खींचते हैं। इसके अलावा भक्त को हुक के सहारे 40 फिट ऊपर लटका दिया जाता है. इन्हीं आकर्षक करतबों को देखने के लिए दूर दराज से सैकड़ों की भीड़ उमड़ती है, जो मेले का रूप ले लेती है। कार्यक्रम व पूजा को सफल बनाने के लिए क्षेत्र व समिति के लोग प्रयासरत हैं।

मौके पर आयोजक समिति के भागीरथ महतो, फनी भूषण महतो, चंदन महतो, धरणीधर महतो, माधव मंडल, सहदेव मंडल, पंचानन मंडल, जीतू मंडल, पूर्ण चंद्र सरदार, बाबूराम सरदार, सोनाराम सरदार, ठाकुर सरदार, समा सरदार, देवानंद सरदार, मंगल माझी, तपन गोप एवं दैतारी मंडल ने इसकी जानकारी दी।

तब अंग्रेजों ने बंद कर दी थी परंपरा…..:-

अंग्रेजी में हुक स्विंग फेस्टिवल तथा स्थानीय भाषा में उड़ा पर्व के नाम से प्रचलित साहसिक एवं रोमांचित करने वाली करतब भारी परंपरा का इतिहास क्षेत्र में वैदिक कालीन बताया जाता है। जिसे पाट संक्रांति के अवसर पर आंशिक या पूर्ण रूप से क्षेत्र में प्राय: सभी गांव में भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। रविवार को होने वाले पाट संक्रांति के अवसर पर चड़क पूजा का आयोजन किया जाएगा।

जिसमें सभी स्थानों पर चड़क पूजा पर आयोजित होने वाले उड़ा पर्व के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों का भी आयोजन किया जाएगा। जानकार बताते हैं कि उड़ा पर्व के दौरान भक्तों और भोक्ताओं द्वारा आस्था के बल पर किए जाने वाले दर्दनाक और साहसिक करतबों को देखते हुए अंग्रेजों ने एक समय में इसके आयोजन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था।

बताया जाता है कि बाद में ब्रिटिश सरकार के साथ हुए समझौते के बाद जीवन सुरक्षा की दृष्टि से कई एक परिवर्तनों के साथ इस परंपरा को पुनः प्रारंभ किया गया था। बावजूद इसके दूर दराज से पहुंचने वाले भक्त भी इसे बाबा विश्वनाथ महादेव की असीम शक्ति और आस्था मानते हैं।

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