
आस्था और पहचान की रक्षा को लेकर पारित हुए अहम प्रस्ताव
राँची । नामकुम के भूसुर फुटबॉल मैदान में ‘प्रथम पाहन महासम्मेलन’ का आयोजन भव्य रूप से किया गया, जिसमें झारखंड के 487 ग्रामों के पाहन-पुजारी, पहनाईन और परंपरागत ग्राम प्रधानों सहित हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग शामिल हुए।
इस ऐतिहासिक महासम्मेलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासी धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान की रक्षा, पारंपरिक पूजा पद्धति का पुनरुद्धार, और आदिवासी समाज को बाहरी प्रभावों से मुक्त कर एकजुट करना रहा।
सम्मेलन में पारित हुए दो प्रमुख प्रस्ताव:
पहला प्रस्ताव –
जो लोग अब पारंपरिक आदिवासी पूजा स्थलों पर पूजा नहीं करते हैं या पाहन की उपस्थिति में आदिवासी रीति-रिवाज़ों से पूजा-पाठ छोड़ चुके हैं, उन्हें संताल, मुण्डा, उराँव, हो आदिवासी समुदाय की जातीय पहचान का प्रमाणपत्र दिए जाने का वे पात्र नहीं होंगे।
दूसरा प्रस्ताव
आदिवासी पर्व-त्योहार एवं धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन केवल पारंपरिक पूजा स्थलों पर पाहन-पुजारी की अगुवाई में ही किया जाएगा। चर्च परिसरों या अन्य गैर-आदिवासी स्थलों पर पादरियों द्वारा आदिवासी त्योहारों का आयोजन करना आदिवासी परंपराओं का विकृतिकरण माना जाएगा और इसका कड़ा विरोध किया जाएगा।
सम्मेलन से क्या संदेश गया?
महासम्मेलन में वक्ताओं ने दो टूक कहा कि यह पहल किसी धर्म विशेष के विरोध में नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता, संस्कृति और पारंपरिक धार्मिक व्यवस्था की रक्षा हेतु है। सभा में यह स्पष्ट रूप से संकल्प लिया गया कि आदिवासी समाज को अपनी मूल पहचान और आस्था की जड़ों से जोड़ा जाएगा।
आयोजन की विशेषताएँ:
सभा स्थल पर पारंपरिक रीति से पूजा-अर्चना और स्वागत हुआ।
विभिन्न जनजातीय समुदायों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने दृष्टिकोण और अनुभव साझा किए।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से आदिवासी विरासत को रेखांकित किया गया।
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