कहीं हार की आशंका को लेकर तो नहीं हो रही है कफन वाली सियासत ?
संजय कुमार विनीत
(वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक स्तंभकार)
पहले चुनाव आयोग को मरा हुआ कहना, फिर सफेद कपड़े पर कफन लिखकर प्रदर्शन करना और अब दफ्तर के बाहर चुनाव आयोग के लिए अपशब्द लिखकर पोस्टर लगाना। चुनावी प्रक्रिया पर ऐसे हमले में बहुत सारा संदेश छुपा हो सकता है। क्या सचमुच चुनाव आयोग ने शिकायतों की अनदेखी की या फिर हार की आशंका से ऐसे कदम उठाये जा रहे हैं। इस तरह की सियासत के पीछे चाहे जो भी संदेश हो, पर ऐसे कदम को जरूर दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता है।
उत्तर प्रदेश के सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव मिल्कीपुर में पिछले दिन हुई वोटिंग के पहले भी और बाद में भी चुनाव आयोग को लगातार निशाने पर लेते रहें है। वो लगातार चुनाव आयोग पर धांधली का आरोप लगा रहे हैं। सपा सुप्रिमो ने चुनाव आयोग को मरा हुए कहते हुए सफेद कफन भेंट करने की बात तक कही । अब सपा के कार्यकर्ताओं ने चुनाव आयोग के खिलाफ अपना आक्रोश दिखाते हुए लखनऊ में दफ्तर के बाहर विवादित पोस्टर लगाया है। सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव की इसे लेकर काफी आलोचना भी हो रही है।
सपा सुप्रिमो की विवादित टिप्पणी के बाद बीजेपी भी अखिलेश पर हमलावर नजर आई। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद ने इसपर कहा कि ‘मिल्कीपुर उपचुनाव में हार सामने देख अखिलेश यादव बौखला गए। चुनाव आयोग पर आरोप लगाने से सपा की डूबती नैया नहीं पार होगी। जब तक सपा गुंडों, अपराधियों, माफियाओं और दंगाइयों को सपा से बाहर नहीं निकालेगी तब तक साइकिल पंचर ही होती रहेगी और 2027 में सपा प्रत्याशियों की जमानत बचाना भी मुश्किल होगा।’
सपा के नेताओं के इस संबंधित हजारों वयान सोशल मीडिया पर चल रहे हैं और भाजपा नेता भी जोरदार तरीके से ऐसे वयानों का विरोध कर रहे हैं। अब लखनऊ में सपा पार्टी कार्यालय के बाहर लगे पोस्टर पर गौर करें ,एक पोस्टर लगा है, जिसमें लिखा है- ‘भाजपा को संरक्षण देने वाले ये कफन ओढ़ लें। वहीं दूसरे पोस्टर में लिखा है- ’27 में आएंगे अखिलेश, 32 में भव्य अर्धकुंभ कराएंगे।
इन आरोपों को देखते हुए ये प्रतीत होता है कि चुनाव आयोग ने सचमुच धांधली की है या करवाई है, और दूसरा महाकुंभ की भव्यता को लेकर अब भी कटुता भरी है। खैर, यहाँ चुनाव आयोग को लेकर ही बात करें।अगर ऐसा है तो एक संवैधानिक संस्था पर इस तरह से आरोप लगाया जाना क्या उचित है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का भी शरण लेकर न्याय पाया जा सकता है। पर ऐसे मामले सुप्रीम कोर्ट में क्यूँ नहीं जाते। क्या न्याय पाने से ज्यादा जरूरी हंगामा खड़ा करना होता है।अगर हंगामा ही खड़ा करना है तो आखिर क्यों किया जाता है। इनसबों पर अब जनमानस सब समझ चुकी है कि ऐसे आरोपों को लेकर हंगामा करना सिर्फ अपने होने वाले हार का बहाना ढुढना होता है।
मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव वाली सीट पर जीत को लेकर सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव और उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच ठनी हुई है। दोनों ने ही इस सीट को अपनी प्रतिष्ठा और 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़ रखा है। पर अपनी प्रतिष्ठा को लेकर किसी संवैधानिक संस्था को लहूलुहान करना, मर्यादा का हनन करना कभी उचित नहीं ठहराया जा सकता है। अब दूसरे पहलू पर गौर करें, क्या अखिलेश को मिल्कीपुर सीट हाथ से जाने की आहट हो गई। हार की बौखलाहट में सपा के नेता ऐसे कदम उठा रहे हैं। सपा का गढ़ माने जाने मिल्कीपुर में क्या इस बार ‘कमल’ खिलेगा। अब 8 फरवरी को नतीजे आने के साथ ही पिक्चर साफ हो जाएगा और तब तक आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी रहेगा।