
जमशेदपुर : द्वितीय विश्व युद्ध का बंकर, आज है गुमनाम
दीपक नाग… ✍️
आदिम काल में न तो विकासशील सभ्यता थी और न विज्ञान का विकास हो पाया था। पर जीवन रक्षा करने की शैली तब भी हुआ करता था और आज भी यह प्रथा कायम है । फर्क सिर्फ इतना है कि, आदिम काल में वे लोग जंगली जानवर और प्राकृतिक प्रकोपों से रक्षा पाने के लिए मजबूत गुफाओं में रहते थें और इस दौर में दो देशों के बीच युद्ध की कठिन घड़ी में आत्म रक्षा के लिए बंकरों का निर्माण किया जाता है । समय के अंतराल में गुफा का नया नामकरण बंकर के रूप मे हो गया । गुफाएं प्राकृतिक हुआ करता था और बंकर मानव निर्मित।
द्वीतिय विश्व युद्ध के दौरान का ऐसा ही एक अस्तित्व झारखंड राज्य के जमशेदपुर मौजूद है । भले ही आज देश और दुनिया के नजरों से ओझल है रहे-भरे पेड़ों से घिरा हुआ बंकर। पर हजारों लोगों के लिए सुरक्षा कवच के तरह सीना चौड़ा कर के खड़ा है ।
द्वितीय विश्वयुद्ध की गवाही देता हरे पेड़ों से घिरा जमशेदपुर का लाल बंकर, ऐतिहासिक धरोहर के रूप में आज भी सुरक्षित है । जमशेदपुर में हरे पेड़ों से घिरा लाल बंकर है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध का एक जीता जागता निशानी है। वर्तमान समय में इसे सील कर रखा है । ताकि, ऐतिहासिक धरोहर के रूप में इसे सुरक्षित रह सके ।
जाहिर है ब्रिटिश सरकार के आला अफसर और उनके परिवार की रक्षा के लिए यह मजबूत बंकर बनाया गया था । ब्रिटिश सरकार और शहर के प्रबुद्ध लोगों के लिए आइ. एस. डब्ल्यू. पी. कंपनी के द्वारा इस बंकर का निर्माण किया गया था । इसे अब भी सुरक्षित रखा गया है । इसकी दीवारें इतनी मजबूत है कि, इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी इस बंकर की न तो एक ईंट टूटी है और न ही रंग हल्का हुआ है । वर्तमान में आइ. एस. डब्ल्यू. पी. कंपनी ने इस बंकर को पूरी तरह से सील कर रखा है । अब इस बंकर में किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है । बंकर सील करने के बाद कंपनी ने उस ऐतिहासिक धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए चारों ओर से लोहे के ग्रिल लगा कर बंद कर रखी है ।
समय के अंतराल में आदिम काल के गुफाएं अपना स्वरूप के साथ-साथ नाम भी बदल डाला । आज हम इस रक्षा कवच बंकर के नाम से जानते हैं।