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पद्मश्री पुरस्कार से पुस्कृति झारखण्ड के रत्नों को गूंज महोत्सव में किया भव्य सम्मान

(डायन शब्द से लड़कर समाज में उच्च स्थान पाने वाली महिला छुटनी ने महिला को एक बल देकर राज्य ही नही देश में महिला को सम्मान दिलाया……)

मुरी (संदीप पाठक) – गूंज महोत्सव के तीसरे दिन समापन सम्मान समारोह में आमंत्रित पद्मश्री छूटनी देबी ने कहा कि वर्ष 1999 में ससुराल में डायन प्रथा की शिकार हुई थी ।

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पिछले 25 वर्षों से सरायकेला के बीरबांस गांव में अपने मायके में रह कर, इस दौरान हमने अंधविश्वास और रूढ़ीवादी प्रथा के खिलाफ इस तरह से जोरदार अभियान चलाया कि झारखंड ही नहीं, देश के विभिन्न हिस्सों से डायन प्रथा की शिकार महिलाएं आज उनसे मदद मांगने पहुंचती है। एक समय ऐसा भी था कि घर वालों ने डायन के नाम पर न सिर्फ उसे प्रताड़ित किया, बल्कि मुझे घर से बेदखल भी कर दिया था । तब मैं आठ माह के बच्चे के साथ पेड़ के नीचे रहीं। तब पति ने भी साथ छोड़ दिया था। आज मैं खुद असंख्य महिलाओं की ताकत बन गई हूं।

 

पद्मश्री अवार्ड मधु मंसुरी हंसमुख ने कहा

सांस्कृतिक नवजागरण और झारखंड आंदोलन में अपने गायन से लोगों में उत्साह का संचार करने वाले मधु बताते हैं कि जब वह 17-18 महीने के थे, तभी उनकी मां का निधन हो गया था।उसके बाद एक अहीर महतो के कहने पर सुरा से जान बची और गांव वालों के कहने पर मधुआ से मधु हो गए।
पदम श्री मुकुंद नायक ने कहा कि झारखंड की परंपरा, संस्कृति, लोक संगीत, नृत्य आदि को प्रोत्साहन मिला है। यहां के कलाकारों को उचित मंच पर लाने और छिपी हुई प्रतिभा को ढूंढ निकालने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि इस कार्य में समाज के हर तबके को आगे आना होगा। सूरजमनी भगत ने कहा कि प्रकृति से बेहद करीब रहने और पंरपरा को समेटे रखने वाले इस समाज को सत्ता सिस्टम के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। आज का दिन नई सोच, नए विचार, नई संभावनाओं को आवाज देने का है। गाव के लोगों को जंगल बचाने और जीविका बचाने दोनों का अधिकार दिया गया। इसके आधार पर वन जनता की संपत्ति है। लेकिन, इसकी रक्षा भी जनता की जिम्मेवारी है। इसके अलावा सभा को डॉ संजय बसु मलिक डॉ देवशरण भगत आदि ने भी संबोधित किया।

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