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साहिबगंज
रण बिजय गुप्ता(संथाल ब्यूरो)

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गंगोत्री से गंगासागर तक आयोजित अतुल्य गंगा साइक्लोथोन के समापन मंथन के अवसर पर नई दिल्ली के एनसीसी ऑडिटोरियम में साहिबगंज के गंगा सेवक डॉ रणजीत कुमार सिंह को उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मान प्रतीक सह स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया । विदित हो कि पूर्व सैन्य अधिकारियों के 20 सदस्यीय दल ने मार्च 2022 में गंगोत्री से गंगासागर तक साइकिल यात्रा की थी । साइकिल यात्रा का उद्देश्य गंगा निर्मलीकरण, पॉलिथीन मुक्त भारत, गंगा के किनारे पर्यटक स्थलों का चयन कर राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय पहचान दिलाना एवं गंगा हरीतिमा को बढ़ावा देना था । पूर्व सैन्य अधिकारियों के दल ने झारखंड के साहिबगंज में नमामि गंगे के जिला समिति सदस्य पूर्व गंगा समग्र के प्रान्त सह संयोजक डॉ रणजीत कुमार सिंह और जिला प्रशासन के साथ गंगा जागरूलता तलहटी की सफाई वृक्षारोपण विचार विमर्श भी की थी । अतुल्य गंगा प्रोजेक्ट के तहत गंगा की उत्कृष्ट सेवा कर रहे प्रमुख गंगा सेवियों में से डॉ रणजीत कुमार सिंह को चयनित किया गया । डॉ श्री सिंह ने साहिबगंज में गंगा कार्यों की प्रगति, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट व गंगा की अविरलता – निर्मलता से संबंधित अनेकों मुद्दों पर सार्थक चर्चा की । घाटों पर नमामि गंगे की ओर से सरकार ,जिला प्रशासन और एनएसएस -एनसीसी अन्य संस्था के स्वयं सेवा के रूप में की जा रही गंगा कार्य और सेवा प्रस्तुत किया । जल्द ही गंगा में गिरने वाले सभी नाले टैप कर लिए जाए यह आग्रह किया गया ।
सरकार का ध्यान इधर भी दे
मेरे सुझाव है।
गंगा जो साहिबगंज से हो कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कुछ चुनोतियों का सामना कर रही है ।जिसकी लम्बाई लगभग 83 किलोमीटर है ।जिसमें फररका बैरेज ,सिल्ट गाद ,
चौड़ाई अधिक और गहराई कम जिससे नदी मे पानी कम रह रही है और थोडा भी जल स्तर नदी का बाढ़ या बर्षात के कारण तो जान माल का नुकसान होता है ।भू वैज्ञानिक शब्दों में साहिबगंज ,राजमहल का नदी यौवन अवस्था समाप्त और ओल्ड अवस्था का शुरुवत में बदलता है। जिसके कारण नदी का बहाव तेज नहीं होने के कारण भी सिल्ट गाद का जमा होना स्वभाविक है ।अतः इसे कुछ कुछ के समय अंतराल पर सफाई सिल्ट का होना चाहिए ।नदी का विज्ञान है की जब ओल्ड अवस्था में पहुचता है तो मेडरिंग् और गोखुर के आकर का आकृति बनाता है। जिससे की नदी का जल एक ओर पूर्णतः रुक जाता है। जिससे प्रभाव का दिशा बदल जाता है। जिसे भू वैज्ञानिक शब्दों में शिफ्टिंग कहते है ।
लगभग 20 से 25 सालों में साहिबगंज की गंगा ने 3 से चार बार शिफ्टिंग किया है। पिछले वार शिफ्ट हो कर मुख्य धार बदल गया था पर एक अनुमान के अनुसार यह फिर बदल कर साहिबगंज की ओर आ सकता है ।शहर के विभिन्न नाली नाला आदि का दूषित जल जो कुछ ठोस अबशेष है और कुछ घुलनशील है को अलग अगल कर उसका शोधन कर गंगा में न कर कृषि या घरेलू सरकारी कार्य या बागवानी में उपयोग किए जाए ।क्योंकि गंगा जल को हम पीते है ।
इसे जन आंदोलन बनाना होगा। सभी को जोड़ कर सभी लोगों के विचार को समाहित कर ठोस निर्णय लिया जाय ।
नीति नीयत पर सवाल नहीं है पर कार्यवान पर चिन्ता सभी को है. जो पूर्व में राष्ट्रिय घोषित नदी का हुवा है। सरकार और जनप्रतिनिधि से बहुत अपेक्षा और उम्मीद बंधी है।साहिबगंज में पर्यटन के लिए काफी संभावनाएं है।
जियो ट्यूरियम फॉसिल पार्क, हिल्स रॉक एडवेंचर,
ऐतिहासिक जामी मजीद ,संस्कृतिक आध्यामिक कान्हेयस्थान, शिवगादी, कटघर आदि प्रचुर है। प्रकृति पहाड़ को बिना नुकसान पहुंचाए बने, गंगा की गाय कहे जाने वाले डॉल्फिन को बचाना होगा क्योकि जल को दूषित होने से बचाता है ।गंगा में पाए जाने वाली जीवन रक्षक, बैक्टीरिया बैक्टीरियोफास जो गंगा जल को शुद्ध करता है और 15 से अधिक रोगों से बचाता है उसकी मात्रा भी कम हो रही है।वाटर हेल्थ डेस्क बने जो समय समय पर गंगा जल की गुणवत्ता का आंकलन करें। तीन से पांच गांव के गंगा के किनारे लोगों को जोड़ कर गंगा किनारे वृक्षारोपण कर उसके देख रेख के लिए स्कूल के बच्चों युवाओं को देना चाहिए।
डॉ रंजीत कुमार सिंह ने कहा कि
जनसंख्या बढ़ी है और जल जंगल पहाड़ और प्रकृति की शक्ति घटी है।
तकनीक और इंजीनियरिंग ढूंढता है। जिससे वह प्रकृति का शोषण कर सके और प्रकृति का शोषण भी अति तेज गति से करता है। जब वह प्रकृति का शोषण अति के साथ करने लगता है, तब विनाश का दौर शुरू होता है। यह विनाश, जलवायु परिवर्तन से होने वाला विनाश है। जलवायु परिवर्तन का विनाश अब दुनिया में अलग तरह के तूफान ला रहा है। इसके कारण बाढ़ और सुखाड़ का संकट बढ़ रहे हैं। यह प्रकृति के लिए घातक है, जिस तरह से प्रकृति में कुछ भी अति हो जाती है, चाहे वह मानव जनसंख्या की वृद्धि हो, मानव जनसंख्या के भोग के लिए तकनीक और इंजीनियरिंग का शोषण करने की अति हो, वह इस प्रकृति में खतरनाक होती है। इसी प्रकार जनसंख्या की वृद्धि घातक है। जनसंख्या की वृद्धि से मानव जीवन का आनंद, संतोष, सुख खत्म होता जा रहा है।

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