Spread the love

—– स्टोरी ऑफ द डे —-

(समाज का एक दर्द : कचरे में भविष्य तलाशती जिंदगी)

किसी को गंदगी से है नफरत और इनकी तो किस्मत

बन चुकी है गंदगी…..

सरायकेला। देश भर में व्यापक स्तर पर चलें स्वच्छता अभियान और कोरोना के कहर ने स्वच्छता नहीं अपनाने वालों को भी स्वच्छता के मायने सिखा दिए हैं। परंतु जिनकी सुबह ही कचरे से शुरू होकर शाम कचड़े पर ही खत्म हो रही है उनका क्या ?

जी हां, बात कचरा बीनने वालों की हो रही है। जिन्हें अधिक पढ़े लिखे लोग “वेस्ट पीकर्स” कहते हैं। जिनकी पहचान बदन पर मैले कुचैले फटेहाल कपड़ों से की जा सकती है। और जिनका अधिकांश समय कचड़ों के बीच ही गुजरता है। समाज के इन अभिन्न अंगों को आमतौर पर समाज घृणा की दृष्टि से देखता है।

दुश्वारियां से भरा है इनका जीवन  :-

किसी-किसी हिंदी फिल्मों में इनके जीवन का एकाध अंश देखकर तालियां बजती है। तो कभी सड़कों से गुजरते हुए नजरअंदाजी के साथ कचरा बीनते हुए ऐसों पर नजर पड़ जाती है। परंतु इनके वास्तविक जीवन की ओर कभी भी ध्यान नहीं जाता है। कुछ ऐसे ही कचरा बीनने वालों के दिनचर्या में झांका गया तो पाया गया कि दिन के आधे समय कचरा बीनने के बाद अपने चाल सरीके घरों में ले जाकर कचड़ो की डंपिंग करते हैं। जहां कचड़ों की छंटाई की जाती है। और फिर उसे ले जाकर कचड़ो के टाल में बेचा जाता है।

   

जिससे हुई आमदनी से इनके घर का गुजारा चलता है। और कचरा बीनने और छांटने कि इस पूरे कार्य में पीढ़ी दर पीढ़ी पूरा परिवार शामिल होता है। खेलने और पढ़ने की नन्ही सी उम्र में इनके बच्चे कचड़ों में मिले फिल्म स्टार की तस्वीर को अपना गॉड फादर मानकर जीवन का सफर शिक्षित बनने का नहीं बल्कि फिल्म स्टार की तरह हाव भाव के साथ गुजारने लगते हैं।

इन्हें नहीं लगती कोविड-19 की सुइयां 

जिले में इनकी गिनती का कोई सटीक आंकड़ा नहीं है। फिर भी अनुमानत: दर्जनों परिवार इस तथाकथित कचरा बीनने के रोजगार के साथ जुड़े हुए हैं। कोरोना की दूसरी लहर भी जिले से होकर लगभग गुजर चुकी है। लेकिन आज तक इनके लिए वैक्सीनेशन या फिर सैनिटाइजर और मास्क तथा कोरोना की भयावहता का प्रभाव इन तक नहीं पहुंच पाया है।

इनके लिए नहीं आगे आते हैं समाज सेवकों के सहयोग के हाथ

 

तस्वीरें खींचाकर तथाकथित समाज सेवा करने वालों की जमात आज की तारीख में बड़ी है। लेकिन समाज के इस अनछुए दर्द के लिए इलाज बनकर सामने आने वाले समाजसेवी का इंतजार कचरा बीनने वाले इस समाज को आज बेसब्री से है। ताकि इनके बच्चे भी किसी फिल्मी स्टार का मोह छोड़ शिक्षित होकर देश की सेवा के लिए आगे आ सके।

Advertisements

You missed