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पाट संक्रांति पर हुई चड़क पूजा :

शरीर को वेदना देकर भक्तों ने दिखाई अंध आस्था….

(अंग्रेजी में हुक स्विंग फेस्टिवल तथा स्थानीय भाषा में उड़ा पर्व के नाम से प्रचलित

साहसिक एवं रोमांचित करने वाली करतब भरी परंपरा का इतिहास क्षेत्र में वैदिक

कालीन बताया जाता है….)

सरायकेला।  जिसे पाट संक्रांति के अवसर पर आंशिक या पूर्ण रूप से क्षेत्र के प्रायः सभी गांव में भक्ति भाव के साथ मनाया गया। जिसमें अधिकांश स्थानों पर चड़क पूजा पर आयोजित होने वाले उड़ा पर्व का आयोजन और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन किया गया। बताते चलें कि उड़ा पर्व के दौरान भक्तों और भोक्ताओं द्वारा आस्था के बल पर किए जाने वाले दर्दनाक और साहसिक करतबों को देखते हुए अंग्रेजों ने एक समय में इसके आयोजन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। बताया जाता है कि उड़ा पर्व के दौरान भोक्ता को पीठ में घुसे हुए लोहे की हुक के सहारे ऊंची लकड़ी के बल्ले से लटका कर गोल गोल घुमाया जाता था।

जिसमें कई एक परिस्थितियों में भोक्ता की मौत हो जाने के बाद ब्रिटिश सरकार ने इसके आयोजन पर रोक लगा दी थी। बाद में ब्रिटिश सरकार के साथ हुए समझौते के बाद कई एक परिवर्तनों के साथ इस परंपरा को पुनः प्रारंभ किया गया था। जिसमें वर्तमान में पीठ में हुक घुसाने के साथ-साथ कमर में रस्सी बांधकर गोल गोल घुमाने की परंपरा जारी है। इसके अलावा पीठ में घुसी लोहे की हुक के सहारे सवारी बैल गाड़ियों को खींचना, रंजणि फुड़ा के तहत लोहे के कांटा से भक्त अपने दोनों बाजुओं को छेद कर धागे का घर्षण जैसे करतब भक्तों द्वारा हर-हर महादेव के जयकारे के साथ किए गए।

मोड़ा पाट के तहत लकड़ी के ऊपर लोहे की कील कि शैय्या पर खाली बदन लिटा कर भोक्ता को शोभायात्रा के साथ मंदिर प्रांगण तक लाया गया। जिव्हा बाण के तहत भक्त लोहे की कील को अपने जीत के आर पार करते हुए धागे का घर्षण किए। इसी प्रकार मन्नतों के साथ निआँ पाट करते हुए भक्त आग के अंगारों पर चल कर भक्ति का प्रदर्शन किए। पूरे मामले में चमड़े का बेल्ट या जूता चप्पल पहनना सख्त वर्जित रहा।

पाट संक्रांति पर भगवान शिव की चड़क पूजा,परंपरा, रिवाज़ और इतिहास की तस्वीर दिखा रही सरायकेला में देखे लाइव विडियो……

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सरायकेला के भूरकुली गांव में बाबा विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी चड़क पूजा का आयोजन किया गया। जिसमें हर-हर बाबा विश्वनाथ महादेव के जयकारे के साथ भक्त एवं भोक्ताओं ने धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हुए उक्त सभी करतब किए। इस अवसर पर परंपरागत तरीके से बाबा विश्वनाथ की पूजा अर्चना की गई। और स्थानीय ग्रामीण वासी अपने घरों के सामने बलि प्रथा को जारी रखते हुए सुख शांति और समृद्धि की कामना के साथ बकरों की बलि दिए।

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