Spread the love

वर्षा नहीं होने से मत्स्य पालक के चेहरे पर बढ़ी चिंता की लकीरें; सैकड़ों परिवारों पर रोजी रोटी का संकट मंडराने की संभावना।

मानसून की धीमी रफ्तार से नीली क्रांति पर ग्रहण लगने की संभावना, दो महीने पीछे हो गई मत्स्य उत्पादन…

सरायकेला:संजय मिश्रा

सरायकेला। पर्याप्त वर्षा नहीं होने से सरायकेला-खरसावां जिले में अनावृष्टि की स्थिति बनती देखी जा रही है। जिससे जिले में नीली क्रांति पर ग्रहण लगने की प्रबल संभावना जताई जा रही है। मत्स्य पालक लगभग जल विहीन हो चले तालाबों और पोखरों को निहार रहे हैं।

राज्य स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित प्रगतिशील मत्स्य कृषक और मत्स्य मित्र राधाकृष्ण कैवर्त बताते हैं कि सीजन में अब तक 70 से 80 क्विंटल मछली का स्पॉन तैयार कर क्षेत्र के मछली पालकों को वितरित कर दिया जाता था। परंतु वर्तमान में स्थिति ऐसी बनी हुई है कि स्पॉन उत्पादन के लिए भी तलाब और पोखरा में पानी नहीं बचा है। राधाकृष्ण कैवर्त बताते हैं कि मछली का स्पॉन तैयार करने के लिए मौसमी तालाबों में ही नर्सरी तैयार की जाती है।

पर्याप्त वर्षा नहीं होने के कारण वैसे तालाबों में जलाभाव से 80% तालाबों में मछली का स्पॉन नहीं डाला जा सकता है। उन्होंने बताया कि जून माह में ही तालाबों की साफ सफाई कर मछली का जीरा डालने का काम कर दिया जाता है। राधाकृष्ण कैवर्त कहते हैं कि यदि अगले 10 दिनों तक में पर्याप्त बारिश नहीं होती है तो मत्स्य पालन की स्थिति पहुंच गहरा संकट खड़ा हो सकता है।

कमोबेश यह स्थिति मत्स्य पालन के व्यवसाय से जुड़े जिले के सैकड़ों परिवारों की रोजी रोटी पर संकट की घंटी बजा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि सरायकेला, सीनी, दुगनी, कोलाबीरा और महालीमुरूप सहित आसपास के क्षेत्रों में ही प्रतिदिन लगभग 3 से 4 क्विंटल मछली बिक्री हो जाती है। दर्जनों परिवार इसी मछली के व्यवसाय पर आश्रित हैं।

वर्तमान के अनावृष्टि का प्रभाव मछली के ग्रामीण व्यवसाय पर भी पड़ता हुआ देखा जा रहा है। क्षेत्र में विशेष रुप से बिकने वाली झींगा मछली और घोंघा भी जल स्रोतों से गायब होते बताए जा रहे हैं। कई एक गरीब ग्रामीण महिला और पुरुष स्थानीय तालाबों और नदी नालो जैसे जल स्रोतों से केउट या सींक से बनी छोटी जाली का प्रयोग कर झींगा मछली पकड़ते हैं। और स्थानीय बाजारों में खेजा के हिसाब से बेचकर परिवार चलाते हैं।

यही स्थिति घोंघा के जल स्रोतों से चुन-चुन कर बाजार में बेचने वालों का भी है। इसी से जुड़े सैकड़ों गरीब ग्रामीण परिवार के रोजगार पर भी ग्रहण लगने की संभावना जताई जा रही है।

प्रगतिशील मत्स्य कृषक राधाकृष्ण कैवर्त:-
मछुआ मत्स्य जीवी सहयोग समिति के अध्यक्ष राधाकृष्ण कैवर्त ने सर्वप्रथम जिले में वियतनाम की पेंगाशियस मछली का उत्पादन वर्ष 2012 में शुरू किया था। जिसके बाद मत्स्य पालन में सरायकेला-खरसावां जिला राष्ट्रीय मानचित्र पर उभर कर सामने आया था। कई राज्य स्तरीय सम्मानों से सम्मानित राधाकृष्ण कैवर्त वर्ष 2018 में एक्स्पोज़र विजिट पर इजराइल देश का भ्रमण कर चुके हैं।

जिले में अब तक वर्षा की स्थिति:-
जुन महीने में जिले की औसत वर्षा 50.7 मिमी कम रही है। जिसमें प्रखंडवार सरायकेला में 76.1 मिमी, खरसावां में 118.4 मिमी, कुचाई में 95.6 मिमी, गम्हरिया में 73.5 मिमी, राजनगर में 28.7 मिमी, चांडिल में 64.4 मिमी, नीमडीह में 51.4 मिमी, इचागढ़ में 76.0 मिमी और कुकड़ू में 65.0 मिमी वर्षा हुई है। इसके साथ ही जुलाई महीने में अब तक सिर्फ सरायकेला प्रखंड में 5.4 मिमी बारिश हुई है। इसके अलावा बारिश की एक बूंद भी जिले को प्राप्त नहीं हुई है। जिसमें आवश्यकता के अनुसार मूसलाधार लगातार बारिश नहीं होने के कारण ना तो खेतों में और ना ही तालाबों में जलजमाव की स्थिति बन सकी है।

Advertisements

You missed