Spread the love

साइकिल पर सवार होकर कमल को रौदेंने चले स्वामी

ब्यूरो रिर्पोट (शिवपूजन सिंह)  देश के सबसे बड़े प्रदेश यानी उत्तर प्रदेश में चुनावी पारा चढ़ता जा रहा है. इस तपिश में नेताओ का दल -बदल और पलटी मरना कोई नई बात नहीं है. बीजेपी के मंत्री और पांच साल तक योगी के सहयोगी रहे स्वामी प्रसाद मौर्य का भी अचनाक भगवा से मोह भंग हो गया और वे समाजवादी हो गए , भगवा रंग अब उन्हें रास नहीं आ रहा. यहां क्या बात हो गई ?, क्या खराब मौर्य जी को लग गया कि वे साइकिल पर चढ़ गए ? और अलाकमान अखिलेश अच्छे लगने लगे. क्या ये मौक़े की नज़ाकत है या समय की मांग ?.

Advertisements

हकीकत देखी जाय तो अभी उतर प्रदेश की गद्दी पर सल्तनत किसकी चलेगी, ये कुछ भी साफ नहीं है. लेकिन, मौर्य जी को कमल का रंग अच्छा नहीं लग रहा है , सवाल है कि चुनाव के वक़्त ही बीजेपी का चाल , चलन और चेहरा अच्छा क्यों नहीं लग रहा ?. अगर आपमें इक़बाल होता तो योगी जी की सत्ता के दौरान किनारा कर लेते. लेकिन आपने ऐसा नहीं किया, उस वक़्त अपको किसान, युवा, दलित और कारोबारियों की उपेंक्षा याद नहीं आ रही थी ?. आज अचानक दर्द होने लगा , जब लगा कि सत्ता करवट ले सकती है ?. लेकिन आपकी पलटी महंगी भी हो सकती है ?, इसकी कीमत चुकानी भी पड़ सकती है.क्योंकि ये सियासत है, और इसके रंग भी अलग-अलग है. जनता इस लोकतंत्र की मालिक है और वह ही सबकुछ तय करती है. आपके वोट बैंक में भी सेंध मारी हो जाएगी और मालूम भी नहीं पड़ेगा.लिहाजा, हर बार दल बदलने का गेम महंगा हो सकता है.

इससे पहले स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा को छोड़ मोदी जी के साथ हुए थे. तब भगवा का गुणगान करते थकते नहीं थे. वे बहन मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाया था, आज बीजेपी उनकी नज़र में खलनायक हो गई है? और अखिलेश यादव आँखों के तारे हो गए.

यहां सवाल लोकतंत्र का है, जहां नेता कमीज की तरह पार्टी बदलते रहते है, आपने स्वार्थ और सत्ता के खातिर. उनका मिशन खुद को साधने का रहता है. इसके साथ ही पार्टियों का भी अपना लालच होता है, उन्हें लगता है कि चुनाव में दो – चार ज्यादा सीटें मिल जाएंगी. अपने-अपने फायदे के लिए सभी गुना गणित करते है , जो इस लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. यहां बात स्वामी प्रसाद मौर्य की नहीं है, ऐसे नेता कई दल में मिल जाएंगे,

जो कई दलों में अपने पैर फैला चुके हैं. जिनकी विचारधारा क्या है ?, मुद्दा क्या है ? और किसकी सियासत करते है ?. ये सवाल ही बना रहता है. इन्हें नेता कम राजनीति के पलटू राम ज्यादा कहा जाता है.

Advertisements

You missed