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सरायकेला-खरसावां (संजय मिश्रा) जगन्नाथ धाम पुरी के तर्ज पर सरायकेला में आयोजित होने वाली महाप्रभु श्री जगन्नाथ की परंपरागत रथ यात्रा पर लगातार दूसरे वर्ष इस साल भी कोरोना इफेक्ट हावी रहेगा। इसके साथ ही रथयात्रा के सभी धार्मिक अनुष्ठानों को परंपरा अनुसार संपन्न कराए जाने की तैयारी जारी है।

इसे लेकर महाप्रभु के रथ निर्माण की तैयारी की जा रही है। साथ ही देवस्नान पूर्णिमा के बाद से ज्वर से पीड़ित होकर अस्वस्थ चल रहे महाप्रभु श्री जगन्नाथ का इलाज भी परंपरा अनुसार प्राचीन जगन्नाथ श्री मंदिर के अन्नसर गृह में जारी है। वही महाप्रभु की वार्षिक रथयात्रा को लेकर जगन्नाथ भक्तों में एक ओर उल्लास देखा जा रहा है। जबकि कोरोना संकट को देखते हुए रथ यात्रा के आयोजन को लेकर भक्तों के लिए पाबंदियों मायूसी भी देखी जा रही है। सरायकेला की परंपरागत रथ यात्रा पर दूसरी बार कोरोना संकट और उसके प्रोटोकॉल को देखते हुए अधिकांश भक्तजन घरों से ही महाप्रभु के वार्षिक रथयात्रा के धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करने की विचार देते हुए देखे जा रहे हैं।

जारी है महाप्रभु का औषधीय इलाज :

कलियुग में जीवंत देव के रूप में पूजे जाने वाले महाप्रभु श्री जगन्नाथ के रथ यात्रा का इतिहास सरायकेला में तकरीबन ढाई सौ साल पुराना रहा है। जगन्नाथ संस्कार एवं संस्कृति के विषय में मान्यता रही है कि महाप्रभु के सभी धार्मिक अनुष्ठान जीवन से जुड़े हुए हैं। देवस्नान पूर्णिमा पर शाही औषधीय स्नान के पश्चात चढ़ावे के भोग प्रसाद में खीर खिचड़ी के साथ खट्टे आमड़े की सब्जी का सेवन कर महाप्रभु ज्वर से पीड़ित होकर बीमार हो गए थे। जिसके बाद श्री मंदिर अन्नसर गृह में इलाजरत हैं। जहां श्री मंदिर के पुजारी पंडित ब्रह्मानंद महापात्र द्वारा उनकी सेवा की जा रही है। इस दौरान महाप्रभु को प्रतिदिन भोग के रूप में सिर्फ चूड़ा का सेवन कराया जा रहा है। इलाज के तौर पर माली परिवार द्वारा विशेष रुप से पांच जड़ी बूटियों से मिलाकर तैयार की गई पंचमूल औषधि बीते 29 जून को सेवन कराई गई। इसके ठीक 10 दिन बाद 9 जुलाई को 10 जड़ी बूटियों से मिश्रित दशमूल औषधि सेवन कराने के पश्चात महाप्रभु स्वस्थ होकर 10 जुलाई को अपने भक्तों को नेत्र उत्सव के दिन नवयौवन रूप में दर्शन देंगे। जिसके पीछे जगन्नाथ संस्कृति के तहत मानवीय संदेश रहा है कि प्रकृति पर आधारित मानव जीवन निरोगी और श्रेष्ठ है। जानकार भी इस संबंध में बताते हैं कि वर्तमान के कोरोना संकट काल में प्रकृति आधारित जीवन की विशेष रुप से प्रमुखता रही है।

यादों के झरोखों में सरायकेला की परंपरागत रथ यात्रा :

क्षेत्र के इतिहास के जानकार और बुजुर्गजन भी बताते हैं कि सरायकेला रजवाड़े के समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा तीन रथों से होकर चला करती थी। जिसमें महाप्रभु श्री जगन्नाथ की रथ 16 पहियों की हुआ करती थी। इसी प्रकार आठ-आठ पहियों वाली दो रथें बहन सुभद्रा और बड़े भाई अग्रज बलभद्र के लिए हुआ करती थी। इस दौरान सरायकेला नगर की सड़कें भी 20 फीट चौड़ी हुआ करती थी। जो संरक्षण के अभाव में आज सिमटकर मात्र एक छह पहियों वाली एक रथ की रथ यात्रा होती है। जबकि सड़कें भी सिमट कर संकरी हो चली है।

जाने जगन्नाथ संस्कृति को :-

  1. ईश्वर होते हुए भी आम जीवन से जुड़े घटनाओं का धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
  2. कलियुग में टूट रहे रिश्ते नातों को जोड़ने का संदेश देते हुए महाप्रभु अपने भाई और बहन के साथ होते हैं और रथ यात्रा करते हैं।
  3. एकमात्र देव जो अपने भक्तों से मिलने के लिए साल में एक बार रथ यात्रा कर श्री मंदिर से बाहर भक्तों के बीच पहुंचते हैं।
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