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विजयादशमी के साथ प्राचीन जगन्नाथ श्री मंदिर के गुंबद का मरम्मति कार्य हुआ शुरू

सरायकेला। सरायकेला स्थित प्राचीन आध्यात्मिक धरोहर जगन्नाथ श्री मंदिर के गुंबज पर नीम और पीपल के पौधे उग आने के कारण श्री मंदिर का गुंबज दरकने की स्थिति में बना हुआ है। जिससे प्राचीन श्री मंदिर पर भी टूट-फूट होने का खतरा मंडरा रहा है। इसे देखते हुए नवगठित जगन्नाथ सेवा समिति द्वारा बैठक कर गुंबज पर उग आए पौधों को हटाते हुए मरम्मति का कार्य किए जाने का निर्णय लिया गया था। जिसके आलोक में विजयादशमी के शुभ अवसर पर एवं शुभ मुहूर्त में विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करते हुए मंदिर शिखर सहित श्री मंदिर के अन्य मरम्मति कार्य का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर पुजारी ब्रह्मानंद महापात्र सहित जगन्नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष राजा सिंहदेव, उपाध्यक्ष सुदीप पटनायक, सचिव पार्थो दास, सह सचिव परशुराम कवि, रवि सतपथी, कोषाध्यक्ष राजीव लोचन महापात्र, कोषाध्यक्ष चिरंजीवी महापात्र, मार्गदर्शक मंडली के वरिष्ठ सदस्य सुधीर दास, बादल दुबे, रमानाथ आचार्य, सुशांत महापात्र, कार्यकारिणी सदस्य पार्थसारथी आचार्य, राजेश मिश्रा, अजय साहू, दुखुराम साहू, बद्रीनाथ दारोगा, तुषार दुबे, सुमित महापात्र, राजा ज्योतिषी, समीर सामल, सरोज सतपथी, गणेश सतपथी, सनत साहू, रीता दुबे एवं जगन्नाथ भक्त उपस्थित रहे।

सरायकेला में अलौकिकता का प्रतीक है प्राचीन जगन्नाथ श्री मंदिर  :-

महाप्रभु जगन्नाथ के सरायकेला में पूजे जाने की परंपरा लगभग तीन सौ वर्ष पुरानी बताई जाती है। जिसमें महाप्रभु के सरायकेला आगमन के संबंध में बताया जाता है कि उड़ीसा स्थित ढेंकानाल के पुजारी जलंधर महापात्र को नदी में स्नान करने के क्रम में महाप्रभु के विग्रह ( लकड़ी प्रतिमा) का दर्शन बहते हुए हुआ था। जिसके बाद पुजारी जलंधर महापात्र ने महाप्रभु के विग्रह को घर लाकर श्रृंगार करते हुए पूजा अर्चना शुरू की। इसके बाद पुजारी जलंधर महापात्र महाप्रभु के विग्रह को लेकर तत्कालीन सरायकेला स्टेट पहुंचे। और खपरैल घर में महाप्रभु को स्थापित कर पूजा-अर्चना करने लगे। इसी दौरान युद्ध के लिए जा रहे सरायकेला स्टेट के तत्कालीन महाराज अभिराम सिंह को कुटिया से आती हुई घंटी की आवाज सुनाई पड़ी। जिस पर महाराज अभिराम सिंह ने कुटिया में जाकर महाप्रभु से विजय का आशीर्वाद मांगा। युद्ध में विजयी होकर लौटने के बाद उन्होंने पुजारी सहित महाप्रभु को खरकाई नदी के तट पर जमीन देते हुए लाकर बसाया। फिर इसे प्रसिद्ध शिल्पकार चंद्र मोहन महापात्र के निर्देशन में भव्य रुप दिया गया। बाद में एक माली परिवार द्वारा महाप्रभु के बड़े भाई अग्रज बलभद्र और बहन सुभद्रा के विग्रहों को लाकर श्री मंदिर में स्थापित किया गया। बताया जाता है कि पश्चिम बंगाल स्थित बांकुड़ा और उड़ीसा के मिश्रित मंदिर वास्तुकला निर्माण शैली का अनुपम उदाहरण वर्तमान के श्री मंदिर का निर्माण टेराकोटा पद्धति से करीब दो सौ साल पहले कराया गया था।

इंटेक द्वारा कराया जाना था पुनरुद्धार :-

झारखंड राज्य के नामित धरोहरों में सरायकेला के प्राचीन जगन्नाथ श्री मंदिर को शामिल करते हुए इसके पुनरुद्धार की कवायद शुरू की गई थी। जिसमें इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर कल्चरल हेरिटेज द्वारा श्री मंदिर को उसके मूल स्थिति में बनाए रखते हुए पुनरुद्धार किया जाना था। परंतु 10 वर्षों से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी इस दिशा में किसी भी प्रकार की पहल नहीं की जा सकी है।

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