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आपदा को अवसर में यदि ऐसे बदला जाए तो हुनरमंद बनेगा अपना भारत

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सरायकेला-खरसावां (संजय मिश्रा /सुदेश कुमार )  कहते हैं कि पिता यदि अपनी संतान का संसार होता है तो मां संतान की वास्तविक गुरु। कुछ ऐसा ही वाक्या चांडिल के रहने वाले 14 वर्षीय जीत कुमार डॉन के साथ चरितार्थ होता हुआ देखा गया है। जहां लॉकडाउन के दौरान बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज के कारण हर घर में बच्चों के मोबाइल से चिपके रहने और मोबाइल का एडिक्ट होने की शिकायतें हर मां के जुबान पर आम हो चला है। और छोटी सी उम्र में ही मोबाइल पर गेम खेलने के आदी हो चले बच्चों के कारण माता-पिता की परेशानियां बढ़ती हुई देखी जा रही हैं। ऐसे में एक मां मीठु डॉन ने अपनी संतान जीत कुमार डॉन के मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए उसके अंदर के पेंटिंग के हुनर को लॉकडाउन के दौरान उभारने का काम किया। जिसमें जीत ने भी अपनी माता के इच्छा को पूरा करने के लिए इस कार्य में भरपूर सहयोग किया है। जिसका परिणाम है कि आज जीत ने कोरोना काल में आपदा को इस प्रकार अवसर में बदलने का काम किया है। जो अन्य घरों और बच्चों के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकता है। जीत ने इस दौरान अपने विद्यालय काल में पेंटिंग के हुनर को उभारते हुए कई प्रकार के बेहतर पेंटिंग कर अपने घर को ही एक आकर्षक लुक देने का काम कर रहे हैं। अपने घर के आस-पास ही 14 वर्षीय जीत को लिटिल पाब्लो पिकासो के रूप में काफी तारीफ हासिल हो रही है। जिसमें इतनी कम उम्र में पेंटिंग की खूबसूरत कला के प्रदर्शन पर लोग जीत की भरपूर सराहना कर रहे हैं। और अब जीत की तमन्ना है कि उसे और उसकी पेंटिंग को कदरदानों का बेहतर मंच मिल सके।

मध्यम वर्गीय परिवार में खिल रहा है चित्रकारी का कमल

चांडिल कॉलेज गेट के समीप रहने वाले जीत के पिता रुपेश डॉन का एक छोटा सा ऑटो पार्ट्स का दुकान है। और माता मीठू डॉन एक कुशल गृहिणी हैं। जीत का एक छोटा भाई किंशुक डॉन है। जीत जेवियर स्कूल गम्हरिया के आठवीं कक्षा का छात्र हैं। और अपने विद्यालय जीवन में पेंटिंग कला के क्षेत्र में कक्षा तीसरी में प्रथम स्थान, कक्षा चौथी में प्रथम स्थान और कक्षा पांचवी में द्वितीय स्थान हासिल कर चुका है। कक्षा छठवीं में पोस्टर मेकिंग में जीत को अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है।

सबक और प्रेरणा है हर माता-पिता और उनके बच्चों के लिए

हालांकि घटना आम हो सकती है। परंतु पूरे वाक्ये में आज के परिपेक्ष्य में यह प्रेरणा स्रोत भी है। बताया जा रहा है कि वर्तमान के समय में मोबाइल का प्रचलन हद से अधिक बढ़ा हुआ है। जिसका सुप्रभाव के साथ साथ विशेषकर बच्चों पर इसका कुप्रभाव देखा जा रहा है। जहां बच्चे गेम खेलने से लेकर अन्य गतिविधियों के लिए भी मोबाइल के आदी बने हुए हैं। जिसका असर बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता हुआ बताया जा रहा है। ऑनलाइन गेम के दुष्प्रभाव के कई दर्दनाक घटनाएं भी सामने आती रही हैं। ऐसे में बच्चों के मोबाइल के बुरी लत को छुड़ाने के दौरान भी कई घटनाओं की कहानियां जग जाहिर हुई हैं।

जीत की मां के प्रयास को एक पॉजिटिव प्रयास के रूप में समाज के लिए देखा जा सकता है। जिसके तहत बच्चों के हुनर को सामने लाकर उनसे मोबाइल के बुरी लत को छुड़ाया जा सकना संभव हो सकता है।

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