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जरा हट के….

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देवी के आगमन का एहसास करा रही

काश के फूलों की अठखेलियां…

(बंगाल में दुर्गा पूजा में है खास महत्व)

मुरी (संदीप पाठक) आसमान में छाए सफेद बादलों के साथ धरती पर चारों तरफ फैले सफेद कागज के फूल इन दिनों देवी के आगमन का एहसास करा रही है । इन दिनों जहां भी नजर दौड़ा ए लंबे-लंबे काश के फूल मंद-मंद बहती हवाओं के साथ अठखेलियां करते मन को ऐसे प्रफुल्लित करते हैं, मानो पूरी प्रकृति देवी दुर्गा के स्वागत को आतुर हो रही है।

दरअसल , वर्षा ऋतु के समापन एवं शरद ऋतु के आगमन के दौरान ऊंचे पहाड़ी इलाकों,खेतों की मेढों वह नदियों के तट पर काश के फूल लहराते नजर आते हैं । ‌काश फूल नदी किनारे जलीय भूमि, बालूई सूखे इलाकों ,पहाड़ी एवं ग्रामीण क्षेत्र में पीले रूपी हर स्थानों पर देखें जा सकते हैं। लेकिन नदी के तटीय इलाकों में काशिफूल ज्यादा उगते हैं । काश फूल एक तरह की घास की प्रजाति है। आयुर्वेद में इसका कई रोगों में औषधिय महत्व है। शरद ऋतु के आगमन पर जब नीले आसमान में सफेद बादल अठखेलियां करती है तब धरा में सफेद का फूल होले – होले हिलते हुए अपने अस्तित्व को बयां करते हुए ऐसे इतराते हैं मानो धरती और आसमान सादगी से नहीं उठा हो।

शरद ऋतु के वर्णन में तो कभी कल्पनाओं की उज्जवलता देखते ही बनती है। इसलिए तो महाकवि कालिदास अपने ऋतुसंहार महाकाव्य में शरद ऋतु के वर्णन में कहते हैं- शरद ऋतु का पादर्पण रमणीय नववधू के समान होती है। पाके हुए धान से सुंदर एवं झुकी बालियां तथा खिले हुए कमलो के मुख वाली शरद ऋतु ,काश फूल का उज्जवल वस्त्र धारण किए हुए मतवाले हंस‌ के कलरवो का नूपुर पहने हुए अवतरित होती है। कवि ने काश फूल को नववधू के वस्त्र परिधान के रूप में कहा है।

साहित्य में काश फूल का बड़ा ही प्रभाव है। इसका कारण भी है। शरद ऋतु को साहित्य में काफी स्थान जो दिया गया है। बांग्ला साहित्य में दुर्गापूजा और शरद ऋतु का एक विशेष महत्व है, जो काशफूल के बिना अछूता है। कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर अपने श पमोचनश्श् नृत्य नाट्य की रचना में काश फूल के संबंध में कहते हैं- यह मन की कालिमां दूर करती है, शुद्धता लाती है, भय दूर कर शांति वार्ता वहन करती है। शुभ कार्य में काश फूल के पत्ते और फूल का उपयोग किया जाता है ।

कवि काजी नज़रुल इस्लाम अपनी कविता में कहते हैं- काश फूल मन में सादगी का सिहरन जगाए, मन कहता कितना सुंदर प्रकृति…, सृष्टिकर्ता की अपार सृष्टि…। प्राचीन काल से लेकर आज के नए कवि और साहित्यकार सभी ने काश फूल का बखूबी वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। बंगाल के दुर्गापूजा में काश के फूल को खास महत्व दिया जाता है। यहां दुर्गापूजा से संबंधित कोई भी रचनाएं, पुस्तिकाएं या विज्ञापन ही क्यों न हो, इसमें माता की तस्वीर के साथ काशफूल और ढाकी अवश्य होती है।

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