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बागरायडीह गांव स्थित प्राचीन माता दुर्गा का मंदिर…..

यहां मां वनदुर्गा के स्वरूप में तांत्रिक मत से पूजी जाती हैं शक्ति

स्वरूपा मां दुर्गा…

सरायकेला Sanjay : जिला मुख्यालय सरायकेला से महज 15 किमी दूर खरसावां प्रखंड के बागरायडीह गावं में स्थित माता दुर्गा की प्राचीन मंदिर अपनी दैवीय शक्ति और भक्ति के लिए लोक आस्था का केंद्र रहा है। इस मंदिर के प्रति लोगों की आस्था आध्यात्मिक शक्ति और भक्ति से जुड़ी है। यहां मां दुर्गा की प्रकृति रूप में वनदुर्गा के स्वरूप में मुझे जाने का विधान है। मान्यता है कि यहां भक्त श्रद्वालुओं द्वारा सच्चे मन से मांगी गयी हर मुराद पूरी होती है। यहां माता के वनदेवी रुप की भक्ति व आस्था के साथ पूजा की जाती है। दुर्गा मंदिर पूजा समिति के अध्यक्ष बाबलु प्रधान ने बताते हैं कि खरसावां प्रखंड के बागरायडीह स्थित प्राचीन माता दुर्गा मंदिर में दुर्गा पूजा को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी है। माता के मंदिर में विजयादशमी के दूसरे दिन एकादशी को विशेष पूजा होती है।

जिसमें हजारो भक्त श्रद्वालुओं की भीड़ उमड़ती है। माता की पूजा व आराधना के लिए यहां केवल सरायकेला-खरसावां जिले ही नही बल्कि झारखंड के अन्य जिलों के साथ पड़ोसी राज्य ओड़िसा व बंगाल से भी भक्त श्रद्वालु माता की पूजा करने पहुंचते है। दुर्गा मंदिर पूजा समिति के अध्यक्ष बाबलु प्रधान ने बताया कि इस बार 6 अक्टूबर को पूजा सह मेला का आयोजन किया जाएगा। 5 अक्टूबर को जागरण सह माँ अम्बे की विधिवत पूजा तथा गुरुवार सुबह 4 बजे से स्थानीय जलाशय से पूजा अर्चना कर मंदिर तक दांडी पड़ाव कार्यक्रम होगा। इसके पश्चात शिव पार्वती का शुभ विवाह, बेलवरन तथा अग्नि कुवांरी की पुजा होगी। पूरे दिन महाशक्ति की पूजा होगी और शाम 4 बजे से आगुन (निया) माड़ा कार्यक्रम होगा। जहां माता के भक्त अग्नि की वेदी पर चलकर भक्ति के शक्ति का प्रदर्शन करेंगे।

माता के मंदिर में मां दुर्गा का जीवंत प्रतिमा स्थापित है और साल भर प्रत्येक दिन माता की पूजा यहां होती है। ऐसे प्रत्येक सप्ताह रविवार को माता की विशेष पूजा होती है। एकादशी के दिन श्रद्धालुओं भारी संख्या में मां की आराधना करने पहुचते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि सच्चे मन से मां से की गई प्रार्थना असफल नहीं जाती है। एकादशी के दिन माता के दरबार में विशेष पूजा के साथ कई कार्यक्रम आयोजित होते है। जिसके साक्षी बनने पहुंचे भक्त श्रद्वालुओं की भीड़ मेला का रुप ले लेता है। इस दिन पूजा अर्चना के पश्चात भक्त मन्नत अनुसार दहकते अंगारो पर नंगे पावं चलते है। लेकिन माता की कृपा से भक्तो के पावं पर छाले तक नही पड़ते है। मन्नत अनुसार यहां बलि पूजन भी होता है।

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