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8 नवंबर को रांची में आयोजित होने वाली सरना धर्म कोड जनसभा को लेकर पूर्व सांसद एवं आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी जानकारी; कहा…

देश के 15 करोड़ प्रकृति पूजा का आदिवासियों को धार्मिक आजादी नहीं; इसके लिए 8 नवंबर को रांची से पक्ष विपक्ष दोनों को ललकारेंगे…

सरायकेला:संजय मिश्रा

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सरायकेला। आदिवासी सेंगेलअभियान की ओर से आगामी 8 नवंबर को रांची के मोरहाबादी मैदान में विशाल सरना धर्म कोड जनसभा का आयोजन किया जाएगा। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी जानकारी देते हुए आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि देश के लगभग 15 करोड़ प्रकृति पूजक आदिवासियों को धार्मिक आजादी नहीं मिली है। इसे लेकर आगामी 8 नवंबर को देश विदेश से आने वाले लाखों आदिवासियों के साथ विशाल सरना धर्म कोड जनसभा का आयोजन कर इसके लिए देश के सभी पक्ष-विपक्ष दिग्गज नेताओं को ललकारा जाएगा।

इस पर भी बात नहीं बनने से आगामी 8 दिसंबर को भारत बंद करते हुए एक दिन के लिए पूरे भारत में रेल रोड चक्का जाम किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज और संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए आदिवासी समाज को नए सिरे से सोचना और चलना पड़ेगा। भारत देश की आजादी के बाद अधिकांश आदिवासी नेता आरक्षण का लाभ लेकर पद, प्रतिष्ठा और सत्ता का लाभ जरूर लिया है। मगर आदिवासी समाज के संरक्षण और समृद्धि में उनका योगदान नहीं के बराबर है।

लोकसभा में 47 आदिवासी सांसद और विधानसभाओं में 553 आदिवासी विधायकों का योगदान अब तक शायद नगण्य है। झारखंड प्रदेश में सोरेन खानदान इसका एक दुर्भाग्यपूर्ण खोखला उदाहरण है। उसी प्रकार हजारों आदिवासी जन संगठन हैं। जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष उन्हीं पार्टियों और नेताओं के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हैं और आदिवासी समाज के एजेंडा, एकता और समाज सुधार के बदले नेताओं से पैसा लेकर नेताओं के वोट बैंक के लिए ही काम करते हैं।

अभी जहां तहां आदिवासी जन संगठन कुड़मी महतो के आदिवासी बनने के जद्दोजहद का विरोध तो कर रहे हैं। मगर झामुमो जैसी पार्टियों का विरोध नहीं करते हैं जो कुड़मी महतो को आदिवासी बनाने का अनुशंसा कर चुके हैं। यह दोहरा नीति आदिवासी समाज के साथ भीतरीघात है। ओल चिकि हूल वैसी, माझी परगाना महाल के नाम से कुछ ऐसे ही नेता संताली भाषा और उसकी लिपि-ओल चिकी के लिए अचानक एक दिन का झारखंड बंद किया था।

फिर उसी संताली भाषा और ओल चिकि विरोधी झामुमो सरकार के साथ चिपक जाना संताली भाषा, ओल चिकी लिपि और आदिवासी समाज को धोखा देना है। ऐसी पार्टियों, नेताओं और संगठनों से आदिवासी समाज के अस्तित्व को बचाने और पहचानने का समय आ गया है। आज मरांग बुरु, लुगु बुरु, अजोध्या बुरु आदि के बर्बादी के लिए सभी दोषी नेताओं, संगठनों को केवल पहचाने की जरूरत है। दोहरे चरित्र वाले आदिवासी नेताओं और संगठनों से आदिवासी समाज को बचाना आज सभी ईमानदार समाज प्रेमियों का अहम दायित्व है।

आदिवासी सेंगेल अभियान के अनुसार पार्टियों को दोष देना बेकार है। पार्टियां तो वोट और सत्ता के लिए सबकी बात करते ही रहेंगे। मगर असली दोषीदार तो आदिवासी नेता और आदिवासी जन संगठन हैं। जो आदिवासी एजेंडा, एकता और समाज सुधार की बात नहीं करते हैं। इन्हें बेनकाब करते हुए महान आदिवासी समाज और संस्कृति को बचाने की चुनौती को स्वीकार करना होगा।

एजेंडा आधारित आदिवासी जन एकता और जन आंदोलन से जरूर सफलता हासिल किया जा सकता है। परन्तु प्रथा-परंपरा के नाम पर जारी कतिपय गलत रूढ़िवादिता को तर्कशीलता और संविधान की कसौटी पर कसना भी जरूरी है। अन्यथा आदिवासी समाज से नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, राजतांत्रिक स्वशासन व्यवस्था, बहुमूल्य वोट की खरीद बिक्री जारी रहेगा। झारखंड बने 23 वर्षों में आदिवासियों को सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखने के लिए सोरेन खानदान के पिता- पुत्र सर्वाधिक दोषी हैं। जो पांच बार मुख्यमंत्री बनकर भी बेकार साबित हो रहे हैं।

इस मौके पर कोल झारखंड बोदरा, विष्णु बानरा, राजकिशोर लोहारा, सोनाराम सोरेन, तिलका मुर्मू, फागु मुर्मू, विमो मुर्मू, श्रीमती हेंब्रम, सुंदर बानरा, पारसनाथ ठाकुर, कृपा गोडसोरा, संजय गोडसोरा और विभिन्न आदिवासी संगठन के प्रतिनिधि मौजूद रहे।

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