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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर खास :

नारी तुम युगो युगो से महान हो; अबला नहीं तुम परिवार और

समाज के सम्मान हो….

सरायकेला। दहलीजों तक सिमटी, खिड़की के झरोखों से तथा छत के मुंडेरों से छुपती छुपाती दुनिया की रौनक को निहारती और इस रंगीन दुनिया में कदमताल कर खुद के सपनों को बिना बंदिशों के पूरा करने की आशा मन में समेट सदियों से जीती आई महिला की जिंदगी पहले के वनिस्पत आज काफी बदल चुकी है। आज की महिला बोल्ड, बिंदास, शिक्षित, वैज्ञानिक और आधुनिक हो चली है। पुरुषों के वर्चस्व वाले सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी महिलाओं की दिन प्रतिदिन पैठ और सक्रियता भी बढ़ रही है। यहां तक की रक्षा क्षेत्र, उद्यमशीलता, तकनीक जैसे क्षेत्रों में भी महिलाएं अब आगे आ रही है। हाल के दिनों की बात करें तो वायु सेना, थल सेना में भी महिलाएं अब शामिल होने लगी है। यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में काफी अहम है और भविष्य में महिला सशक्तिकरण को और मजबूत करने की दिशा में प्रेरणादायक भी है।

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महिला सशक्तिकरण के बड़े-बड़े दावे और वादे के साथ

चल रहे हर स्तर के प्रयासों की बात करें तो न सिर्फ इसके बदलाव की गति अपेक्षाकृत धीमी है बल्कि अब भी पुरुषोंचित दंभ समाज की कई कुत्सित और विकृत मानसिकता इस दिशा में रोड़ा बनकर खड़ी है। ऋग्वैदिक काल से लेकर अब तक की इतिहास की बात करें तो हर दौर में महिलाओं की महिमा और उपयोगिता को हर मनीषियों ने माना है। वेद, पुराण, उपनिषद ने भी महिलाओं के कीर्तियों का खूब गुणगान किया है। आखिर ईश्वर के बाद एक महिला ही है जो सृजन करती है। यह सौभाग्य पुरुष को नहीं है। आज के आधुनिक समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मनीषियों ने भी परिवार समाज और देश के विकास ने महिलाओं की भूमिका को अहम माना है। यह बात भी सही है अगर मानव की पीढ़ियां साल दर साल विकास की ओर अग्रसर है तो इसके केंद्र में महिला के सृजनशीलता ही है। ब्रिघम यंग ने भी कहा है जब आप किसी पुरुष को शिक्षित करते हैं तो केवल एक पुरुष को शिक्षित करते हैं। जब आप एक महिला को शिक्षित करते हैं तो एक पीढ़ी को शिक्षित करते हैं।

महात्मा गांधी ने भी महिलाओं के बारे में कहा है कि पुरुष स्वार्थहीन सेवा की भावना में कभी भी महिलाओं के समान नहीं हो सकता है।वही बी आर अंबेडकर ने भी कहा है कि मैं किसी समुदाय की प्रगति का मापन उस समुदाय की स्त्रियों की प्रगति के स्तर के आधार पर करता हूं।

कोफी अन्नान ने भी कहा है कि :

विकास के लिए महिलाओं के सशक्तिकरण से बेहतर कोई उपकरण नहीं है। हर दौर के मनीषियों द्वारा स्त्रियों की महत्ता को लेकर दिए गए विचार के बाद भी आज भी हमारे समाज की महिलाओं के सशक्तिकरण व विकास की स्थिति अपेक्षाकृत कम है। साथ ही एक महिला के प्रति जो हमारी स्तरीय सोच होनी चाहिए उस दिशा में भी अभाव है। अगर ऐसा नहीं होता तो महिलाएं दहेज के लिए प्रताड़ित नहीं होती या फिर अन्य घरेलू हिंसा का शिकार ना होती। साथ ही लैंगिक असमानता, भ्रूण हत्या व यौन उत्पीड़न जैसे मामले नहीं आते। एक फर्क यह भी है कि हम अपने घर की महिलाओं के प्रति जो सोच रखते हैं वह समाज के महिलाओं के प्रति हम नहीं रख पाते।

यही कुछ समाज की कुत्सित विचारधाराएं हैं

जो महिला सशक्तिकरण की नींव को पूरी तरह से मजबूत नहीं होने देती। महिलाएं आज काफी आधुनिक हुई है। लेकिन आज का समाज अभी भी उन्हें भोग्या के रूप में ही देखता है और उत्पाद के रूप में इस्तेमाल करने से बाज नहीं आता। इस सोच को बदलने की आवश्यकता है। यह सही है कि सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं को तवज्जो देने का प्रयास शुरू हुआ है। लेकिन इस दिशा में भी अभी काफी काम बाकी है। नगर निकाय व पंचायत स्तर का महिलाओं को राजनीतिक भागीदारी दी जा रही है। लेकिन अभी भी सत्ता उनके पति मुखिया पति या अन्य रूप में चला रहे हैं।

संसद में महिला आरक्षण विधेयक 2008

अब तक जमीन पर उतर नहीं पाया है। जिसमें कुल सीटों का एक तिहाई महिलाओं को आरक्षित करने का प्रावधान है। स्थिति यह है कि लोकसभा में अभी भी कुल सीटों के बनिस्बत 11.8% तथा राज्यसभा में केवल 11% महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित हो पाई है। मिजोरम, नागालैंड तथा पांडिचेरी जैसे राज्यों में अभी तक कोई महिला विधायक तक नहीं है। भारत की पुलिस में महिलाओं की भागीदारी से बात करें तो केवल 7.28% महिलाएं शामिल है। यह सरकारी आंकड़े महिला सशक्तिकरण के दावों को मुंह ही चिढ़ा रहे हैं।

ऐसे में इस दिशा में आमूलचूल परिवर्तन काफी आवश्यक है।

सबसे अहम यह है कि समाज में महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव आना चाहिए ताकि लोग महिला और पुरुष में यथार्थ रूप में कोई फर्क ना समझे और महिला की सुरक्षा और सम्मान का अपने परिवार की महिलाओं की तरह पुरजोर ख्याल रखें। हालांकि मैं आशावादी हूं महिला सशक्तिकरण की दिशा में अभी काम बाकी है और मुझे पूरा भरोसा है कि आने वाले दिन में समाज की सोच वास्तविक रूप में महिलाओं के प्रति बदलेगी और महिला सशक्तिकरण का संकल्प सही रूप में पूरा हो पाएगा। जिस दिन यह वास्तविक रूप में पूरा हुआ उस दिन केवल महिला का फायदा नहीं होगा बल्कि इसका फायदा पूरे समाज को मिलेगा और मानव में प्रेम, सद्भाव, त्याग, सहयोग, भ्रष्टाचार मुक्त विकास का सपना भी साकार होगा।

मुझे गर्व है कि मैंने महिला पुरुष में कोई भेद नहीं समझा। यही कारण है कि मेरी दो प्यारी बेटियां हैं और इन्हें पाकर में संतुष्ट हूं। मैं आपको भी आह्वान करती हूं आइए हम सब भी महिला पुरुष के भेद को मिटा कर अपनी सोच को बदलें और महिला सशक्तिकरण के वास्तविक संकल्प को पूरा करें।

विकास कुमार, विचारक……..

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