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सरायकेला के मस्जिदों में अदा की गई बकरीद की नमाज; शांति व मगफिरत की मांगी गई सामुहिक दुआ; जानवरों के साथ बुरी आदतो की दी गई कुर्बानी।

सरायकेला: संजय मिश्रा

सरायकेला। मुसलमान केवल जानवरों की ही नही बल्कि बुरी आदतों की भी कुर्बानी दें। कुर्बानी लोगों में त्याग की भावना जगाती है। खास जानवरों को सवाब की नीयत से अल्लाह की राह में जबहा करे। कुर्बानी हजरत इब्राहीम अलैहिस सलाम की सुन्नत है। मोहम्मद साहब ने भी कुर्बानी का हुक्म दिया है। कुरआन पाक के सूरह कौसर में अल्लाह फरमाता है तुम अपने रब के लिए नमाज पढों और कुरबानी करो। उक्त बातें सरायकेला के जामा मस्जिद एवं राजबांध स्थित मस्जिद में ईद उल अजहा की नमाज अदा करने के बाद कही गई। कहा गया कि दुनिया में मोहब्बत व भाईचारे से बढकर कुछ भी नहीं। यही इंसानियत की नेक राह है। इस पर चलकर ही देश व समाज की तरक्की संभव है। सरायकेला में बृहस्पतिवार को त्याग व भाईचारगी की प्रतीक बकरीद अकीदत के साथ मनाई गई। कुर्बानी की फजीलतें बयान करते हुए ईमामों ने ईद-उल-अजहा पढाई। बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह से नहा धोकर नमाजी पोषाक पहन कर मस्जिदों की ओर चल पडे़। मस्जिद में जमा होकर कतारबद्व तरीके से ईद उल अजहा की नमाज अदा की। साथ ही इमाम से खुतबे भी सुनी। इसके अलावे खुदा से मुसलमानों ने अमन-चैन व खुशहाली के साथ शांति व मगफिरत की सामुहिक दुआ की। खुतबे सुनने के बाद लोगों ने गले लगाकर एक दुसरे को बकरीद की मुबारकबाद दी। नमाज अदा करने के बाद कुर्बानियों का दौर शुरू हो गया। ईद उल अजहा से तीन दिनों तक कुर्बानी की रस्म अदा की जाती है।

इस्लाम में कुर्बानी की है बडी अहमियत:-
इस्लाम में कुर्बानी की बडी अहमियत है। यह एक तरह से माल की इबादत भी है। कुर्बानी दुनिया के तमाम मुसलमानों पर फर्ज है, जो हैसियत रखते है। मोहम्म्द स. ने फरमाया है कि जिसने नेक नीयत, खुशी और हलाल तरीके से कुर्बानी दी उसे जहन्नुम की आग से बचा लिया जाएगा।

बकरों की दी गई कुर्बानी:-
अल्लाह की राह पर सैकडों की संख्या में बकरों की कुर्बानी दी गई। बताया गया कि बकरीद की नमाज के साथ शुरू हुई कुर्बानी अगले तीन दिनों तक चलेगी। ऐसी मान्यता है कि हजरत इब्राहिम अलहीसलाम ने अपने बेटे इस्माइल अलहीसलाम से स्वप्न में कहा कि तुम अपने सबसे प्रिय वस्तु की कुर्बानी दो। हजरत इब्राहीम ने अल्लाह के खातिर इस काम को कर दिखाया। और अपने इकलौते बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बानी देने के दौरान हजरत इब्राहीम की आंखो में पटटी बंधी थी। अल्लाह ने फरिश्तों के सरदार हजरत जिबरईल को भेजकर हजरत इस्माइल की जगह एक दुम्बे (बकरा) को रखवा दिया। हजरत इब्राहीम ने जब बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई तो उनकी जगह वह बकरा कुर्बान हो गया। इसलिए इस याद को ताजा रखने के लिए बकरीद के मौके पर जानवरों की कुर्बानी दी जाती है।

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