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परंपरा: फाल्गुन पूर्णिमा पर 24 को सरायकेला में निकलेगी परंपरागत दोल यात्रा; श्री राधा कृष्ण संग नगरवासी खेलेंगे गुलाल की होली।

“दोले तू दल गोविंदम, चापे तू मधुसूदनम; रथे तू वामन दृष्टा, पुनर्जन्म न विद्यते”

सरायकेला:संजय मिश्रा

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सरायकेला। वृंदावन और अवध की होली की तरह ही सरायकेला में भी रंगो के त्यौहार होली की विशिष्ट परंपरा रही है। यहां जगन्नाथ धाम पूरी के तर्ज पर फाल्गुन महीने के पूर्णिमा पर नगरवासी श्री राधा गोविंद के साथ गुलाल की भक्ति पूर्ण होली खेलते हैं। आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली द्वारा वर्ष 1990 से इस प्राचीन परंपरा को जीवंत बनाया जा रहा है। इसी के तहत इस वर्ष भी मंडली के संयोजक झारखंड रत्न ज्योति लाल साहू के नेतृत्व में रविवार को परंपरागत तरीके से दोल यात्रा निकाले जाने की तैयारी की जा रही है।

“दोले तू दल गोविंदम, चापे तू मधुसूदनम; रथे तू वामन दृष्टा, पुनर्जन्म न विद्यते”, शंकराचार्य के उक्त धर्म वचन की सार्थकता के साथ सरायकेला की सांस्कृतिक विरासत के रूप में दोल यात्रा के आयोजन की तैयारी की जा रही है। जिसके तहत कंसारी टोला स्थित प्राचीन मृत्युंजयखास श्री राधा कृष्ण मंदिर से रविवार की शाम 5:35 बजे दोल यात्रा का शुभारंभ किया जाएगा।

जिसमें पालकी पर सवार होकर श्री राधा कृष्ण नगर परिक्रमा करेंगे। इस अवसर पर नगरवासी अपने अपने घरों के समक्ष भगवान श्री राधा कृष्ण का शंख ध्वनि और उलूध्वनि से स्वागत करते हुए उनके साथ गुलाल की होली खेलेंगे। इस अवसर पर पारंपरिक ढाक बाजा और घोड़ा नाच का आयोजन भी किया जाएगा। मान्यता रही है कि फाल्गुन पूर्णिमा पर श्री राधा कृष्ण के साथ होली का समागम जीवन में रंग भरने और खुशहाली लाने का कार्य करती है।

टाइम टू टाइम दोल यात्रा कार्यक्रम:-
अपराहन 4:35 बजे- राजमहल स्थित श्री रघुनाथ मंदिर में श्री राधा कृष्णा के आवाहन पूजन विधान के साथ प्रस्थान।
अपराहन 4:45 बजे- श्री राधा कृष्ण का कंसारी टोला स्थित मृत्युंजयखास श्री राधा कृष्ण मंदिर में आगमन, प्रभु का महास्नान के साथ अलौकिक श्रृंगार।
अपराहन 5:05 बजे- कोटी ब्रम्हांड अधिपति प्रभु का भव्य दोल विमान में प्रविष्ट एवं तुलसी पूजन।
अपराहन 5:15 बजे- छप्पन भोग और माखन मलाई का चढ़ावा।
सायं 5:35 बजे से- दोल यात्रा का शुभारंभ करते हुए प्रभु का नगर परिक्रमा।

सरायकेला में दोल यात्रा का सफरनामा:-

वर्ष 1620 में स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित हुए सरायकेला की पहचान कला, संस्कृति और सामाजिक परिवेश से विशेष रही है। सरायकेला स्टेट के तत्कालीन राजा अभिराम सिंह के द्वारा पहली बार सामूहिक होली मनाई गई थी। बाद के समय में होली के परंपरागत और आध्यात्मिक तरीकों में बदलाव के साथ निखार भी आता रहा।

स्टेट के राजा उदित नारायण सिंहदेव के माध्यम से दल पूर्णिमा के अवसर पर कंसारी टोला स्थित मृत्युंजयखास श्री राधा कृष्ण मंदिर से दोल यात्रा की परंपरा का शुभारंभ किया गया था। जिसे वर्ष 1990 से आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली द्वारा जीवंत बनाते हुए जारी रखा गया है।

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