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विश्वकर्मा पूजा पर खास सरायकेला में परंपरागत विश्वकर्मा पूजा का इतिहास

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90 वर्ष पुराना…

वनांचल 24 टीवी लाईव की विशेष ——

जरा हटके: अतीत के पन्नों में सिमटी है जानकारी…..

जब लौह नगरी जमशेदपुर में रौशनी

का साधन था लालटेन; तब

सरायकेला रौशन हुआ करता था

बिजली से….

सरायकेला (संजय मिश्रा) अतीत के गर्भ में परंपराओं का खजाना छिपाए सोलह कलाओं की नगरी कही जाने वाली सरायकेला में परंपरागत विश्वकर्मा पूजा का इतिहास तकरीबन 90 साल पुराना रहा है। अंग्रेजों के जमाने में तत्कालीन सरायकेला स्टेट से चली आ रही उक्त विश्वकर्मा पूजन परंपरा का अनवरत प्रचलन आज तक जा रही है। जहां बाबा विश्वकर्मा की परंपरागत पूजा का इतिहास सरायकेला में बिजली के आने के समय से बताया जाता है। जिसके ऐतिहासिक विषय पर संरक्षण और उत्थान का इंतजार आज भी सरायकेला के इतिहास को है। तत्कालीन सरायकेला स्टेट के कुशल मैकेनिक और प्रधान ड्राइवर रहे स्वर्गीय ज्योति लाल परिच्क्षा द्वारा 1932 में उक्त पूजन उत्सव का शुभारंभ किया गया था। आज उन्हीं के परिवार में यह पूजा उनके पोते कार्तिक परिच्क्षा द्वारा जीवंत बनाकर रखा गया है।

स्वर्गीय ज्योति लाल

परिच्क्षा द्वारा 1932

में उक्त पूजन

उत्सव का शुभारंभ

किया गया था।

इतिहास के आईने में सरायकेला में

बिजली का आगमन –

बताया जाता है कि 1920 के दशक में जब तत्कालीन कालीमाटी और आज के लौहनगरी जमशेदपुर से गुजरी रेलवे लाइन पर स्टेशन से लालटेन की रोशनी दिखाकर ट्रेनों को रवाना किया जाता था, तब सरायकेला थॉमस एडिसन के विद्युत बल्ब की रोशनी से जगमगाती थी। बताया जाता है कि 1925 में गया स्थित देव महाराज के बुलावे पर जब सरायकेला स्टेट के तत्कालीन राजा उदित नारायण सिंहदेव एवं राजकुमार आदित्य प्रताप सिंहदेव खाने पर गए, तो उनकी नजर खानसामा के एक जर्मन बावर्ची ब्रूनो पर पड़ी। पूछताछ करने पर पता चला कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी का वह लड़ाकू सैनिक संघर्ष में घायल होकर समुद्र के बहाव के साथ भारत आ पहुंचा था। राजा उदित नारायण सिंहदेव द्वारा ब्रूनो को सरायकेला स्टेट लाया गया। जहां ब्रूनो ने इलेक्ट्रिसिटी पर अपनी रुचि दिखाई। इसे लेकर राज दरबार में प्रस्ताव लाकर राज्य के कुशल मैकेनिक एवं प्रधान ड्राइवर ज्योति लाल परिच्क्षा को इसका भार सौंपा गया। ब्रिटिश शासन के दौरान प्रिंसली स्टेट रहे सरायकेला में जर्मनी से मंगाए सामानों द्वारा साताणी बांध के समीप पावर हाउस बनाया गया। वहां 75 अश्वशक्ति के एक और 18-18 अश्वशक्ति के दो इंजनों से डायनेमो आधारित तकनीक से बिजली का उत्पादन प्रारंभ किया गया। और क्षेत्र को रोशन किया गया। बताया जाता है कि इसी बिजली से उस समय मुक सिनेमा हॉल भी संचालित किया जाता था। जहां जलते हुए विद्युत बल्ब और सिनेमा को देखने के लिए बिहार, बंगाल, उड़ीसा सहित दूरदराज से भी लोग सरायकेला स्टेट आया करते थे।

अतीत के पन्नों में सिमटी है जानकारी –
कहते हैं कि इतिहास को भुलाकर भविष्य संवारने की लालसा सफल नहीं होती है। इसी प्रकार सरायकेला में बिजली उत्पादन के इतिहास की जानकारी से किसी को भी विशेष सरोकार नहीं रहा है। और वर्तमान के भावी पीढ़ी के लिए गौरवान्वित करने वाला यह विषय लगभग शुन्य का बना हुआ है। कार्तिक परिच्क्षा बताते हैं कि क्षेत्र को गौरवान्वित करने वाले इस अतीत की जानकारी को भावी पीढ़ी के लिए जीवंत बनाए रखना आवश्यक है।

आज पूजे जाएंगे बाबा विश्वकर्मा….

सरायकेला सहित आसपास के क्षेत्रों में भी शनिवार को बाबा विश्वकर्मा की पूजा आराधना की जाएगी। इसके तहत लगभग सभी मशीनी क्षेत्रों में विश्वकर्मा पूजा को लेकर तैयारी की जा रही है। जिसमें सीनी स्थित रेलवे वर्कशॉप सहित क्षेत्र अंतर्गत बसी अन्य कंपनियों में भी श्रद्धा भाव के साथ बाबा विश्वकर्मा की पूजा अर्चना की तैयारी की जा रही है।

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