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पूर्व मुख्यमंत्री सह सरायकेला विधायक चंपई सोरेन ने अपने पैतृक गांव झिलिंगगोंडा स्थित जाहेरथान में पूरे आदिवासी रीति-रिवाज के साथ बाहा मनाया पर्व

रिपोर्टर – जगबंधु महतो

गम्हरिया : पूर्व मुख्यमंत्री सह सरायकेला के विधायक चंपाई सोरेन ने अपने पैतृक गांव में पूरे आदिवासी रीति-रिवाज के साथ बाहा पर्व मनाया । सरायकेला विधायक चंपाई सोरेन ने झिलिंगगोंडा स्थित जाहेरथान पहुंचकर आदिवासी वेशभूषा में प्रकृति के देवता की पूजा अर्चना की। चंपाई सोरेन ने कहा की बाहा पर्व में आदिवासी समुदाय के लोग अपने सृष्टिकर्ता और प्रकृति के देवता मरांगबुरू, जाहेर आयो के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार प्रकट करते हैं। समाज के लोग अपने पारंपरिक पुजारी नायके बाबा व माझी बाबा के मार्गदर्शन में सृष्टिकर्ता के प्रति अपनी श्रद्धा का प्रकट करते हैं। वे निरंतरता से प्राकृतिक तत्वों के साथ एक संपर्क में रहते हैं। जिसका परिणामस्वरूप उनके जीवन में संतुलन और समृद्धि होती है। बाहा पर्व में आराध्य देवी-देवताओं को उनका प्रिय फूल सारजोम बाहा एवं मातकोम गेल अर्पित करते हैं। इन फूलों का पूजन करके लोग अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध को मजबूत करते हैं। जिससे समृद्धि और सामूहिक एकता का संदेश मिलता है। बाहा पर्व पर समुदाय के लोग एक-दूसरे के साथ सामंजस्य और सहयोग के भाव को मजबूत करते हैं। यह पर्व समृद्धि, सौहार्द और प्राकृतिक संबंधों को मजबूत करता है और समुदाय को एक-दूसरे के साथ गहरी बंधनों में जोड़ता है। समाज के लोगों ने पूजा व प्रार्थनाओं के माध्यम से देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, जिन्हें वे अपने जीवन के हर क्षेत्र में सहायक मानते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कहा कि 23 मार्च शहीद दिवस के दिन संथाल की पावन धरती से धर्मांतरण और बांग्लादेशी घुसपैठ के विरुद्ध उलगुलान करेंगे। झारखंड के आदिवासियों के साथ बांग्लादेशी घुसपैठी और धर्मांतरण कर उन्हें लगातार ठगा जा रहा है। लेकिन अब वे प्रमुखता के साथ आंदोलन कर इन मुद्दे को उठाएंगे। उन्होंने कहा जब वे मुख्यमंत्री बने तो झारखंड के सभी पवित्र धार्मिक स्थल जाहेरथान-जाहेरगढ़ को एक पर्यटक स्थल की विकसित करने की योजना बनाई। जिसका नतीजा है कि आज हर एक जाहेरथान प्राकृतिक सौंदर्यता की छंटा बिखेर रहा है।समृद्धशाली है आदिवासियों का इतिहास देश-विदेश में है धार्मिक स्थल चम्पई सोरेन ने कहा की आदिवासियों का इतिहास रहन सहन गौरवशाली रहा है। झारखंड, उड़ीसा, बंगाल, असम, जैसे राज्य के साथ साथ देश के कोने-कोने में आदिवासी देवताओं के स्थल हैं। वही पड़ोसी देश बांग्लादेश, नेपाल में भी आदिवासी और उनके धार्मिक स्थलों की काफी प्रचलित मान्यता है।