इंसान हूं भुख भी लगती है, जीने की कई उम्मीदें हैं, हमें भी जीने का अधिकार चाहियें
आपका अधिकार, आपकी सरकार आपके द्वार के कार्यक्रम झारखण्ड के गरीबों के अधिकार के लिए द्वार तक पहुंचने की शुभकामना यह तस्वीर दे रही है । तस्वीर में यह महिला शायद ये अपने में मस्त और मगन जरूर है सवाल कई है कि यह इंसान है या नही । यदी सरकार के नजर में इंसान है तो इसे भी जीने का अधिकार है, इसे भी एक कंबल, जीने के लिए पेंशन योजना का लाभ, समुचित इलाज मिलनी चाहिए। सरकार की योजना में 60 वर्ष के व्यक्ति या महिला या विधवा और दिव्यांजन को पेंशन की योजना बनायी गई है। उन गरीब लोगों के लिए धोती-साड़ी योजना, सर्दी आते ही कबंल का वितरण जिला प्रशासन करती है सवाल यह की सरकार के खाते में मानसिक रोग से पिड़ित लोगों के सुविधा के लिए योजना नही है क्या । यदी है तो यह तस्वीर सड़कों पर क्यों………
मामला पोटाका प्रखण्ड की :-
हल्दीपोखर बाजार में पिछले 5 महीने से एक 35 वर्षीय मानसिक रूप से विक्षिप्त युवती नेशनल हाईवे सड़क के किनारे कड़ाके की ठंड में लेटी रहती है, हर आने जाने वाले लोग इन्हें सिर्फ देखते हैं, मगर इस ठंड से बचने के लिए किसी ने इसे कंबल तक नहीं दिया, सर पर चोट होने से सैकड़ों मक्खियां सर पर भिन्न-भिन्न कर रही है, जिसके कारण दिन-रात मक्खियों को भगाते भगाते युवती परेशान है, आखि रवह भी इंसान है पेट में भुख लगती है पर लोग साफ सुथरा भिखरी की तलास करते है क्यों कि राशिफल में लिख है की भिखारी को भोजन खिलानी है दिन अच्छा जायेगा । पर मानसिक रोग से पिड़ित इस महिला को भिख भी नही मिलती । दुकानदार डांटकर और पानी फेंक कर भगा देते है ।
चिंता का विषय यह है कि बिना इलाज के और बिना खाना खाए कब तक यह जीवित रह पाएगी दूसरी और कड़ाके की ठंड को देखते हुए प्रशासन को चाहिए कि इसे कंबल उपलब्ध कराते हुए पर्याप्त इलाज की व्यवस्था की जानी चाहिए, भले युवती मानसिक रूप से विक्षिप्त है मगर अपने बीमारी से परेशान भी तो है, अपनों ने छोड़ रखा है अधिकार तो भुल चुका है, अपनी ही पहचान खो चुका है उसे मदद को कौन आगे आता है…………
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